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________________ अर्थसंबुष्टि अधिकार प्रतिपातस्थान मिथ्यात्व | अं असं | अं प्रतिपद्यमान | अं देश | ज०००००००००००। आ = ज००००3 = आ =a ज ०००० उ म्ले = म्ले ज०००००उ = ज०००० उ अं ! सूक्ष्मसांपराय | अं । यथा अनुभय - ज०००००००००००उ सा= ज ० ० ० ० उ = सा प = प =a ज००००००। उ बहुरि सर्वस्थान ऐसें = a इनकौं छोटा असंख्यात लोककी सहनानी नवका अंक ताका भाग देइ बहुभागमात्र अनुभयस्थान ऐसे = 21 ८ । बहुरि याकौं ताहीका भाग दोएं बहुभागमात्र प्रतिपद्यमान स्थान ऐसे = 2। ८ । बहुरि एकभागमात्र प्रतिपात स्थान ऐसे जानने = a । ऐसे सकलसंयमाधिकारविौं संदृष्टि जाननी । अथ चारित्रमोहका उपशमन अधिकारविौं संदृष्टि कहिए है-तहां जो द्वितीयपोशमसम्यक्त्व सहित श्रेणी चढ़े ताकें द्वितीयोपशम सम्यक्त्वसम्बन्धी अपूर्वकरणका प्रथम समयादि अनिवृत्तिकरणका बहुभाग पर्यन्त गुणश्रोणिविणे ऐसी रचना जाननी उपरितनद्रव्य मिपाव मिश्र सभ्यत्व स१२-१ ७ ख १७ गुणोप 10 गुणिणिद्रव्य स०१२-=a ७ख १७गु ओप= 2 उदयावलीद्रव्य स११२७ख १७ गुणोप १२= ७म १७ स०१२-a ७व १७ ग सa१२७ख १७ग इहां तीनों दर्शनमोहके निषेकानिका क्रमरूप आकार लिखि ताके नीचे तिन तीनोंके द्रव्यकी संदृष्टि लिखी । द्वयर्धगुणहानि गुणित समयप्रबद्धको सात अनन्त सतरहका भाग दीएं दर्शनमोहका द्रव्य होइ । ताविौं किंचिदून कीएं मिथ्यात्वका अर ताहीकौं गुणसंक्रमणका भाग देइ असं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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