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________________ ५०४ क्षपणासार प्रतिच्छेद पाइए है ताकौं पल्यके असंख्यातवां भागमात्र असंख्यातका भाग दीएं तहां एकभागमात्र अपूर्व स्पर्धककी अंत वर्गणाका वर्गविर्षे अविभागप्रतिच्छेद पाइए हैं । इहां प्रथम समयविर्षे अपकर्षण कीए जे जीवके प्रदेश तिनिविर्षे अपूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणाविषै तो बहुत प्रदेश दीजिए है । अर द्वितीयादि अन्त पर्यन्त वर्गणानिविर्षे विशेष घटता क्रम लीएं दीजिए है। इहां विशेषका प्रमाण प्रथम वर्गणाको जगच्छोणिका असंख्यातवां भागका भाग दीएं आवे है। बहुरि अपूर्व स्पर्धककी अन्त वर्गणाविर्षे दीया प्रदेशसमूहकौं साधिक अपकर्षण भागहारका भाग दीएं एक भागमात्र पूर्वस्पर्धककी प्रथम वर्गणाविर्षे दीया प्रदेश समूह हो है। ताके ऊपरि यथोचित विशेष घटता क्रमलीए प्रदेश दीजिए है । इहां प्रदेश देनेका अर्थ यह जानना जो प्रदेशनिकों ऐसे योगरूप परिनमाइए है। इहां प्रथम समयवि कीने अपूर्व स्पर्धकनिका प्रमाण जो एक गुणहानिवि पूर्वस्पर्धकनिका प्रमाण है ताके असंख्यातर्फे भागमात्र जानना ।।६३२।। ओकडदि पडिसमयं जीवपदेसे असंखगुणियकमे । कुणदि अपुव्वफड्ढयं तग्गुणहीणक्कमेणेव' ॥६३३॥ अपकर्षति प्रतिसमयं जीवप्रदेशान् असंख्यगुणितक्रमेण । करोति अपूर्वस्पर्धकं तद्गुणहीनक्रमेणैव ॥६३३॥ स० चं० --द्वितीयादि समयनिविर्षे समय समय प्रति असंख्यातगुणा क्रमकरि जीव प्रदेशनिकों अपकर्षण करै है। बहुरि असंख्यातगुणा घटता क्रमकरि नवीन अपूर्व स्पर्धक करिए है। तहां द्रव्य देनेका विधान कहिए है द्वितीय सकयविर्षे जेते प्रथम समयवि प्रदेश अपकर्षण कीए तिनितें असंख्यातगुणा प्रदेशनिकों अपकर्षण करि प्रथम समयविर्षे कीने थे जे अपूर्वस्पर्धक तिनके नीचें इस समयविषै नवीन अपूर्व स्पर्धक करिए है । तहां अपकर्षण कीए प्रदेशनिविर्षे तिन नवीन कीए अपूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणाविषै वहुत प्रदेश दीजिए है। ताके ऊपरि द्वितीयादि अन्त पर्यन्त वर्गणानिवि विशेष घटता क्रम लीए दोजिए हैं। यहां प्रथम समयविषै कीए अपूर्व स्पर्धकनितें द्वितीय समयविर्षे कीएं नवीन अपूर्व स्पर्धकनिका प्रमाण असंख्यात गुणां घटता कानना। बहुरि तिसकी अन्त वर्गणाके ऊपरि प्रथम समयविर्षे कीए अपूर्व स्पर्धकनिकी प्रथम वर्गणा तीहिविर्षे तातें असंख्यातगुणा धटता दीजिए है। ताके ऊपरि पूर्व स्पर्धककी अन्त वर्गणापर्यन्त विशेष घटता क्रम लीएं दीजिए है । बहुरि तृतीयादि समयनिवि भी ऐसे ही विधान जानना । विशेष इतना समय-समय प्रति अपकर्षण कीए प्रदेशनिका प्रमाण असंख्यातगुणा क्रमतें जानना। अर नीचे नीचे नवीन अपूर्व स्पर्धक करिए है तिनका प्रमाण असंख्यातगुणा घटता क्रमतें जानना। बहुरि तहाँ अपकर्षण कीया प्रदेशनिविर्षे नवीन स्पर्धककी प्रथम वर्गणाविर्षे बहुत प्रदेश होइ । ताके ऊपरि ताकी अन्त वर्गणापर्यन्त तौ विशेष घटता क्रमलीएं देना। अर ताके ऊपरि पूर्व समयवि कीने स्पर्धकको प्रथम वर्गणा विर्षे असंख्यातगुणा घटता दीजिए है। ताके ऊपरि विशेष घटता क्रम लीए दीजिए है । ऐसें देय प्रदेशनिका विधान कह्या अर दृश्यमान प्रदेश सर्व समयनिविर्षे पूर्व अपूर्व स्पर्धकनिकै विशेष घटता क्रमलीएं ही जानना ॥६३३।। १. क० चु० पृ० ९०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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