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________________ केवलिसमुद्घातके बादकी क्रियाका निर्देश ४९९ जो जघन्य योगस्थान है ताकी जघन्य वर्गणा” असंख्यातगुणी जो यथायोग्य मध्यम वर्गणा ताका वर्गनिके समान इहां सर्व आत्मप्रदेशनिविष समानरूप अविभागप्रतिच्छेद हो हैं। सो यह एक समय ही रहे है। पीछे हीनाधिकता लीएं पूर्व स्पर्धकरूप योग परिणमि जाय हैं। बहुरि तहाँ लोकपूरण समयविर्षे अंतमुहूर्तमान स्थिति अवशेष राखिए है। सो यहु अवशेप रह्या आयुतै संख्यातगुणा जानना। इहां पूर्व स्थिति थी तामै इतनी स्थिति विना अवशेष सर्व स्थितिका कांडककरि घात भया है ॥६२६॥ इस लोकपूरण क्रियाके अनंतरि समुद्धातक्रियाकौं समेटें हैं सो क्रम कहिए है एत्तो पदर कवाडं दंडं पच्चा चउत्थसमयम्हि । पविसिय देहं तु जिणो जोगणिरोधं करेदीदि ॥६२७॥ अतः प्रतरं कपाटं दंडं प्रतीत्य चतुर्थसमये । प्रविश्य देहं तु जिनो योगनिरोधं करोतीति ॥६२७॥ स० चं०-इस लोकपूरणके अनंतरि प्रथम समयविर्षे लोकपूरणकौं समेटि प्रतररूप आत्मप्रदेश करै है। द्वितीय समयविर्षे प्रतर समेटि कपाटरूप आत्मप्रदेश करै है। तीसरे समय कपाट समेटि दंडरूप आत्मप्रदेश करै है। ताके अनन्तरि चौथा समयविर्षे दंड समेटि सर्वप्रदेश मूल शरीरविर्षे प्रवेश करै है। इहां समुद्धात क्रियाके करने समेटनेविर्षे सात समय भए। तहां दंडके दोय समयनिविष औदारिक काययोग है, जातै इहाँ अन्य योग न संभव हैं। वहुरि कपाटके दोय समयनिविष औदारिकमिश्रकाययोग है, जातै इहां मूल औदारिकशरीर अर कार्मणशरीर इन दोऊनिका अवलंबनकरि आत्मप्रदेश चंचल हो हैं । बहुरि प्रतरके दोय समय अर लोकपूरणका एक समयविर्षे कार्मण काययोग है, जातें तहाँ मूल शरीरका अवलंबन करि आत्मप्रदेश चंचल न हो हैं । वा शरीर योग्य नोकर्मरूप पुद्गलक नाहीं ग्रहण करैं हैं। तहां अनाहारक है ऐसा जानना । पीछे मूल शरीरविर्षे प्रवेशकरि तिस शरीरप्रमाण आत्मा भया तहां औदारिकयोग ही है। ऐसैं समुद्धात क्रियाका वर्णन किया। बहुरि लोकपूरण पीछे स्थिति-अनुभागकांडकघातका आरम्भ किया था सो मूल शरीर विर्षे प्रवेशकरि शरीर प्रमाण आत्मा होई अन्तर्मुहुर्त काल तहां विश्राम कीया। तहाँ संख्यात हजार स्थिति कांडक भएं पीछे योगनिका निरोध करै है । इहां निरोध नाम नाशका जानना ।।६२७।। बादरमण वचि उस्सास कायजोगं तु सुहुमजचउक्कं । रुंभदि कमसो बादरसुहुमेण य कायजोगेण' ॥६२८।। वादरमनो वच उच्छ्वासकाययोगं तु सूक्ष्मजचतुष्कं । रुणद्धि क्रमशो बादरसूक्ष्मेण च काययोगेन ॥६२८॥ १. एत्तो अंतोमुहुत्तं गंतूण बादरकायजोगेण बादरमणजोगं णिरुंभइ । तदो अंतोमुत्तेण बादरकायजोगण बादरवचिजोगं णिरुंभइ तदो अंतोमहत्तण बादरकायजोगण बादरउस्सासनिस्सासं णिरुभइ । तदो अंतोमहत्तेण बादरकायजोगेण संभवबादरकायजोगं णिरुभइ ०००००० । क. चु. पृ. ९०३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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