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________________ ४९८ क्षपणासार भागमात्र था ताकौं असंख्यातका भाग दीएं तहाँ बहुभागमात्र घटाइ एक भागमात्र अवशेष राखे है । बहुरि अप्रशस्त प्रकृतिनिकौं क्षीणकषायका अन्त समयविर्षे जो अनुभाग रह्या था ताकौं अनन्तका भाग दीएं तहाँ बहभाग घटाइ एक भागमात्र अवशेष राख है। बहरि कपाटरूप द्वितीय समयविषै जो दंड समयविर्षे स्थिति अनुभाग रहे थे तिनकौं क्रमते असंख्यात अनंतका भाग दीएं तहाँ बहुभाग घटाइ एक भागमात्र अवशेष राखे है । बहुरि प्रतररूप तीसरा समयविर्षे कपाट समयविर्षे जो स्थिति अनुभाग रह्या ताकौं असंख्यात अनंतका भाग क्रमतें दीएं तहाँ बहुभाग घटाइ एक भागमात्र अवशेष राखै है । बहुरि लोकपूरणरूप चौथा समय विषै जो प्रतर समयविर्षे स्थिति अनुभाग रह्या था ताकौं असंख्यात अनंतका भाग क्रमतें दीएं तहाँ बहुभाग घटाइ एक भागमात्र अवशेष राखै है। प्रशस्त प्रकृतिनिका स्थितिघात हो है, अनुभागघात न हो है ऐसा जानना । बहुरि गुणश्रेणिनिर्जरा आवजित करणवत् हो है ॥६२४॥ चउसमएसु रसस्स य अणुसमओवट्टणा असत्थाणं । ठिदिखंडस्सिगिसमयिगघादो अंतोमुहुत्तुवरिं' ।। चतुःसमयेषु रसस्य च अनुसमयापर्वतनमशस्तानां । स्थितिखंडस्यैकसमयिकघातो अंतर्मुहूर्तोपरि ॥६२५।। स० चं०-ऐसैं च्यारि समयनिविष अप्रशस्त प्रकृतिनिके अनुभागका अनुसमयापर्वतन भया। समय-समय अनुभागका घटना भया । बहुरि स्थितिखण्डका एक समयकरि घा एक-एक समयविर्षे एक-एक स्थितिकांडकघात कीया सो यह माहात्म्य समुद्घात क्रियाका जानना । बहुरि लोकपूरणके अनन्तरि अन्तमुहूर्तमात्र स्थितिकांडक वा अनुभागकांडकका आयाम जानना । अन्तर्मुहूर्त कालकरि स्थिति-अनुभागका घटावना जानना ॥६२५॥ जगपूरणम्हि एक्का जोगस्स य वग्गणा ठिदी तत्थ । अंतोमुहुत्तमेत्ता संखगुणा आउआ होदि ॥६२६॥ जगत्पूरणे एका योगस्य च वर्गणा स्थितिस्तत्र । अंतर्मुहूर्तमात्रा संख्यगुणा आयुषो भवति ।।६२६॥ स० चं०-लोकपूरणका समयविष योगनिकी एक वर्गणा है। पूर्व आत्माके प्रदेशनिविष हीनाधिक योगनिके अविभागप्रतिच्छेद थे। इहां आत्माके सर्व प्रदेशनिविर्षे समान प्रमाण लीएं योगनिके अविभागप्रतिच्छेद भए । याका नाम समयोग परिणाम है । सो यहु सूक्ष्मनिगोदियाकै १. एदेसु चटुसु समएसु अप्पसत्थकम्मंसाणमणुभागस्स अणुसमयमोवट्टणा। एगसमइओ ठिदिखंडयस्स घादो । क. चु. पृ. ९०३ । २. एत्तो सेसिगाए ठिदीए संखेज्जे भागे हणइ । सेसस्स च अणुभागस्स अणते भागे हणइ । एत्तो पाए ठिदिखंडयस्स अणुभागखंडयस्स च अंतोमहुत्तिया उक्कीरणद्धा । क० चु० पृ० ९०३ । ३. तदो चउत्थसमये लोगं पूरेदि। लोगे पुण्णे एक्का वग्गणा जोगस्स त्ति समजोगो त्ति णायव्वो। लोगे पुण्णे अंतोमुहुत्तं ठिदि ठवेदि । संखेज्जगुणमाउआदो । क०, चू०, पृ० ९०२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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