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________________ कषायोंके स्थितिबन्ध आदिको प्ररूपणा ४५१ ही अन्यत्र जानना। बहुरि क्रोधकी द्वितीय संग्रहकृष्टिकी' अवयव कृष्टिनिका प्रमाण संख्यातगुणा है सो चौदह गुणा जानना। ऐसै अवयव कृष्टिनिके प्रमाणका अल्पबहुत्व कह्या। याही प्रकार प्रदेश जे इन संग्रह कृष्टिनिके परमाणू तिनके प्रमाणका भी अल्पबहुत्व जानना, जातें बंध द्रव्य संक्रमण द्रव्य मिलि ऐसा क्रम हो है। बहुरि इस द्रव्य ही के अनुसारि कृष्टिनिका भी अल्पबहुत्व जानना । जाते थोडे द्रव्यकरि थोरी, बहुत द्रव्यकरि बहुत कृष्टि निपजै है ॥ ५४९ ।। वेदिज्जादिद्विदीए समयाहियआवलीयपरिसेसे । ताहे जहण्णुदीरणचरिमो पुण वेदगो तस्से ।। ५५० ।। वेद्यमानादिस्थितौ समयाधिकावलिकपरिशेषे । तत्र जघन्योदोरणचरमः पुनः वेदकस्तस्य ॥ ५५० ॥ स० चं०-जिस संग्रह कृष्टिकौं वेदै है तिसकी प्रथम स्थितिविर्षे दोय आवली अवशेष रहैं तौ आगाल प्रत्यागालका नाश हो है। बहुरि समय अधिक आवली अवशेष रहैं जघन्य स्थिति जो उदयावलीलें ऊपरि एक निषेक ताका उदीरक कहिए उदयावलीवि देनेरूप उदीर्णा करनेवाला हो है। तहां ही तिसके वेदककालका अंत समय हो है सो इहां क्रोधकी द्वितीय संग्रह कृष्टिकी प्रथम स्थितिविर्षे समय अधिक आवली अवशेष रहैं जघन्य स्थितिका उदीरक अर ताके वेदकका अंत समय भया ।। ५५० ॥ ताहे संजलणाणं बंधो अंतोमहत्तपरिहीणो । सत्तो वि य दिणसीदी चउमासब्भहियपणवस्सा ॥ ५५१ ।। तत्र संज्वलनानां बंधो अंतर्महर्तपरिहीनः । सत्त्वमपि च दिनाशीतिः चतुर्मासाभ्यधिकपंचवर्षाः ॥ ५५१ ॥ स० चं-तहां संज्वलनचतुष्कका स्थितिबंध अंतमुहर्त घाटि असी दिन ताका दोय मास अर बीस दिनमात्र है। अर तिनका सत्त्व अंतमुहूर्त घाटि च्यारि मास अधिक पंच वर्षमात्र है । इहां भी पूर्ववत् निरूपण जानना ।। ५५१॥ घादितियाणं बंधो बासपुधत्तं तु सेसपयडीणं । वस्साणं संखेज्जसहस्साणि हवंति णियमेण ॥ ५५२ ॥ १. टीकामें बहुरि लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिकी ऐसा पाठ है मु० । २. तिस्से चेव पढमट्रिदीए समयाहियाए आवलियाए सेसाए ताहे कोहस्स विदियकिट्रीए चरिमसमयवेदगो । क. चु. पृ. ८५८ । ३. ताधे संजलणाणं ट्टिदिबंधो वे मासा वीसं च दिविसा देसूणा। संजलणाणं ट्ठिदिसंतकम्मं पंच वस्साणि चत्तारि मासा अंतोमुत्तूणा । क. चु. पृ. ८५८ । ४. तिण्हं घादिकम्माणं द्विदिबंधो वासपुधत्तं । सेसाणं कम्माणं ट्रिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । क. चु. पृ. ८५८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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