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प्रथम समयमें कितनी और किन कृष्टियोंका उदयादि होता है इसका निर्देश
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पर करनेकी अपेक्षा जो तीसरी संग्रह कृष्टि है उसे प्रथम जानना चाहिये । कारण कि जो अनुभाग की अपेक्षा जिसमें बहुत अनुभाग है उसका पहले उदय होता है। उत्तरोत्तर जो अनन्तगुणी विशुद्धि होती है उसके माहात्म्यवश इन संग्रह कृष्टियोंका उदय इस विधिसे होता है ऐसा यहाँ जानना चाहिये।
पढमस्स संगहस्स य असंखभागा उदेदि कोहस्स । बंधे वि तहा चेव य माणतियाणं तहा बंधे ॥१५॥
प्रथमस्य संग्रहस्य च असंख्यभागान् उदयति क्रोधस्य ।
बंधेऽपि तथा चैव च मानत्रयाणां तथा बंधे ॥५१५॥ स० चं०-कष्टिवेदकका प्रथम समयविषै क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिसम्बन्धी जे अंतर कृष्टि तिनके प्रमाणकौं असंख्यातका भाग दीएं तहां बहुभागमात्र कृष्टि उदय आवै है। तहां एक भागमात्र नीचेकी ऊपरिकी कृष्टिकौं छोडि बीचिकी बहुभागमात्र कृष्टिनिका उदय हो है । जे प्रथम द्वितीयादि कृष्टि तिनकौं नीचली कृष्टि कहिए । बहुरि अंत उपान्त आदि जे कृष्टि तिनकौं ऊपरली कृष्टि कहिए है। तहां उदयरूप न होइ ऐसी नीचली कृष्टि ते तौ अनन्तगुणा बंधता अनुभागरूप होइ करि अर ऊपरिकी कृष्टि अनन्तगुणा घटता अनुभागरूप होइ करि ते कृष्टि बीचिकी कृष्टिरूप परिणमि उदय आवै हैं । बहुरि बंधविर्षे भी नीचली ऊपरली असंख्यातवां भागमात्र कृष्टि छोडि बीचिकी असंख्यात बहुभागमात्र कृष्टि जाननी। उदयरूप कृष्टिनिविर्षे जो ऊपरली अनुदय कृष्टिनिका प्रमाण तातै साधिक दूणा प्रमाण लीए नीचली ऊपरली कृष्टिनिका प्रमाण घटाएं बंधरूप कृष्टिनिका प्रमाण हो है । इनका बंध इहां हो है। बहुरि इहां मानादिककी
पनी प्रथम संग्रह कृष्टिकी नीचली ऊपरली कृष्टिप्रमाणका असंख्यातवां भागमात्र कृष्टिनिकौं नीचें ऊपरि छोडि बीचिकी बहुभागमात्र कृष्टि बंधे है। बहुरि इहां मानादिकनिकी तीनों ही संग्रह कृष्टिनिका उदय नाही हैं अर क्रोधकी द्वितीय तृतीय संग्रहकृष्टिका बंध वा उदय नाहीं है, ऐसा जानना ॥५१५॥
विशेष-नियम यह है कि क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिसम्बन्धी जघन्य कृष्टिसे लेकर अधस्तन असंख्यातवें भागको और उसीकी उत्कृष्ट कृष्टिसे लेकर उपरिम असंख्यातवें भागको छोड़कर शेष असंख्यात बहुभागप्रमाण मध्यम कृष्टि याँ उस समय उदयको प्राप्त होती है, क्योंकि अधस्तन और उपरिम असंख्यातवें भागप्रमाण सदृश धनवाली कृष्टियोंका परिणामविशेषके कारण मध्यम कृष्टिरूपसे ही उदय होता है यह इसका तात्पर्य है । तथा बन्ध भी इसी प्रकार जानना चाहिये ।
कोहस्स पढमसंगहकिट्टिस्स य हेट्ठिमणुभयट्ठाणा । तत्तो उदयट्ठाणा उवरिं पुण अणुभयट्ठाणा ॥५१६॥ उवरिं उदयट्ठाणा चत्तारि पदाणि होति अहियकमा ।
मज्झे उभयवाणा होति असंखेज्जसंगुणिया ॥५१७।। १. ताहे कोहस्स पढमाए संगहकिट्टीए असंखेज्जा भागा उदिण्णा । एदिस्से चेव कोहस्स पढमाए संग्रहकिट्टीए असंखेज्जा भागा बझंति । क० चु०, पृ०८०४ ।
२. सेसाओ दो संगहकिडीओ ण बज्झंति ण वेदिति । पढमाए संगहकिट्टीए हेटूदो जाओ
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