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________________ ४१४ क्षेपणासार निवि क्रमतें एक एक अधस्तन शीर्षका विशेष बंधता अर एक एक उभय द्रव्यका विशेष घटता दीजिए है । तहां अनंतवां भागमात्र घटता अनुक्रमतें पूर्वोक्त प्रकार है । ऐसे लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिका च्यारि प्रकार द्रव्य देनेका विधान है। बहुरि ताके ऊपरि लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिकी नवीन पुरातन कृष्टि है तिन विष द्रव्य देनेका विधान लोभकी ततीय संग्रह कृष्टिका च्यारि प्रकार स्थापि तहां द्वितीय कृष्टिवत जानना। विशेष इतना परातन कृष्टिनिविर्षे अधस्तन शीर्षका द्रव्यतै जेती नीचे पुरातन कृष्टि भई तितने विशेषनिका द्रव्य देना अर नवीन वा पुरातन कृष्टिनिविर्षे उभय द्रव्यका विशेषतै जेती नीचें नवीन पुरातन कृष्टि भईं तिनके प्रमाण करि हीन सर्व कृष्टिनिका प्रमाणमात्र विशेषनिका प्रमाण द्रव्य देना। इहां लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिका च्यारि प्रकार द्रव्य समाप्त भया। बहुरि लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिको पुरातन अन्त कृष्टिके ऊपरि मायाकी प्रथम संग्रह कृष्टिकी नवीन जघन्य कृष्टि है तिस विर्षे मायाकी प्रथम संग्रह कृष्टिकी च्यारि प्रकार द्रव्यविषै अधस्तन शीर्षका द्रव्य बिना एक अधस्तन कृष्टिका द्रव्य एक मध्यम खंडका द्रव्य अर लोभकी सर्व नूतन पुरातन कृष्टिनिका प्रमाणकरि हीन सर्व कृष्टिनिका प्रमाणमात्र उभय द्रव्यके विशषनिका द्रव्य दीजिए है। सो एक अधस्तन कृष्टिका द्रव्यविर्षे लोभकी ततीय संग्रह कृष्टिको अन्त कृष्टिविषै जो अधस्तन शीर्षका द्रव्य दिया ताकौं घटाएं अवशेष लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिकी अन्त कृष्टिका प्रथम समयविषै जो द्रव्य था ताका प्रमाण होइ तामै एक उभय द्रव्यका विशेष घटाएं अवशेष द्रव्य लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिकी अन्त कृष्टिके असंख्यातवें भागमात्र हैं, तातै लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिकी अन्त कृष्टिविर्षे दीया द्रव्यतै इहां मायाकी जघन्य नूतन कृष्टिविर्षे दीया द्रव्य असंख्यातवां भागमात्र बधता जानना। बहुरि ताके ऊपरि द्वितीयादि अन्यपर्यंत नवीन कृष्टिनिविर्षे एक एक उभय द्रव्यका विशेषप्रमाण अनंतवां भाग घटता क्रमकरि द्रव्य दीजिए है। बहुरि ताके ऊपरि मायाको प्रथम संग्रह कृष्टिकी पुरातन जघन्य कृष्टितै लगाय क्रोधको तृतीय संग्रह कृष्टिका पुरातन अन्त कृष्टिपर्यंत पूवोंक्त प्रकार विधान द्रव्य देनेका जानना । तहां सर्व नूतन पुरातन कृष्टिनिविषै एक एक मध्यम खंडका द्रव्यकौं देना अर जेती नींचे नूतन पुरातन कृष्टि भई तिनके प्रमाणकरि हीन सर्व नूतन पुरातन कृष्टिनिका प्रमाणमात्र उभय द्रव्यके विशेषनिका द्रव्यकौं देना अर नवीन कृष्टिनिविर्षे एक एक अधस्तन कृष्टिका द्रव्य देना अर पुरातन कृष्टिविर्षे जेती नीचें पुरातन कृष्टि भई तिनके प्रमाणमात्र अधस्तन शीर्षके विशेषनिका द्रव्य देना। ऐसे द्वितीय समयविर्षे अपकर्षण कीया द्रव्य तिस विर्षे जो कृष्टिसम्बन्धी द्रव्य था तिसके निक्षेपण करनेका विधान कया । बहुरि जो अपना अपना पूर्व अपूर्व स्पर्धकसम्बन्धी द्रव्य था ताकौं “दिवडढगुणहाणिभाजिदे पढमा" इत्यादि विधानकरि तिस द्रव्यकौं साधिक ड्योढ गुणहानिका भाग दीएं लब्ध प्रमाणमात्र अपूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणाविर्षे बहुत द्रव्य दीजिए है। बहुरि ऊपरि प्रथम गुणहानि पर्यंत चय घटता क्रमकरि दीजिए है। बहुरि ऊपरि गुणहानि गुणहानि प्रति आधाआधा द्रव्य दीजिए हैं। या प्रकार जैसैं यहु द्वितीय समयविष वर्णन कीया तैसे ही कृष्टिकरण कालका तृतीयादि अंतपर्यंत समयनिविर्षे विधान जानना। विशेष इतना-समय समय प्रति अपकर्षण कीया द्रव्यका प्रमाण क्रम” असंख्यातगुणा बधता जानना। अर नीचे-नीचे नवीन कृष्टि करिए है तिनका प्रमाण क्रम" असंख्यातगुणा घटता जानना ॥५०३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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