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________________ ४०० क्षपणासार द्वितीयत्रिभागः कृष्टिकरणाद्धा कृष्टिवेदकाद्धा हि । तृतीयत्रिभागः कृष्टिकरणं हयकर्णकरणं च ॥४९११॥ स. चं-छह नोकषायनिकौं संज्वलन क्रोधविौं संक्रमणकरि नाश करनेके अनंतरि समयतै लगाय जो अंतमहर्तमात्र क्रोधबेदक काल है ताकौं संख्यातका भाग देइ तहां बहभागके समानरूप तीन भाग करिए। बहरि अवशेष एक भागकौं संख्यातका भाग देइ तहां बहभागकौं प्रथम त्रिभागविर्षे जोडिए । बहुरि अवशेष एक भागकौं संख्यातका भाग देइ तहां बहुभाग दूसरा त्रिभागविर्षे जोडिए। अवशेष एक भाग तीसरा त्रिभागविषै जोडिए ऐसे करते पहिला त्रिभाग साधिक भया, सो तो अपूर्व स्पर्धकसहित अश्वकर्णकरणका काल है सो पूर्वं होइ गया। बहुरि दूसरा त्रिभाग किंचित् ऊन है सो च्यारि संज्वलन कषायनिका कृष्टि करनेका काल है सो अब वर्ते है । बहुरि तोसरा त्रिभाग किंचिदून है सो क्रोधकृष्टिका वेदककाल है सो आगें प्रवतिसी । बहुरि इस कृष्टिकरण कालविर्षे भी अश्वकर्णकरण पाइए हैं। जातें इहां भी अश्वकर्णके आकारि संज्वलन कषायनिका अनुभागसत्त्व वा अनुभागकांडक वर्ते है। तातै इहां कृष्टिसहित अश्वकर्णकरण पाइए है ऐसा जानना। तहां प्रथम समयविर्षे एक स्थितिबंधापसरण होने करि संज्वलनचतुष्कका अंतमहतं घाटि आठ वर्षप्रमाण अन्य कर्मनिका पूर्व स्थिति बंधतै संख्यातगणा घटता संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबंध हो है । बहुरि एक स्थितिकांडक घात होने करि घातिया च्यारि कर्मनिका पूर्व स्थिति सत्त्व” संख्यात बहुभागमात्र घटता संख्यात हजार वर्षमात्र अर तीन अघातियानिका पूर्व स्थिति सत्त्वते असंख्यात बहुभागमात्र घटता असंख्यात वर्षमात्र स्थितिसत्त्व पाइए है ।।४९१॥ कोहादीणं सगसगपुवापुत्रगयफड्ढयेहितो। ओकड्डिदूण दव्वं ताणं किट्टी करोदि कमे ।।४९२॥ क्रोधादीनां स्वकस्वकपूर्वापूर्वगतस्पर्धकान् । अपकर्षयित्वा द्रव्यं तेषां कृष्टि करोति क्रमेण ॥४९२॥ स० चं-संज्वलन क्रोध मान माया लोभनिका अपना अपना पूर्व अपूर्वस्पर्धकरूप जो सर्व द्रव्य ताकौं अपकर्षण भागहारका भाग देइ एक भागमात्र द्रव्य ग्रहि यथाक्रम लीए तिन क्रोधादिकनिकी कृष्टि करै है ॥४९२।। १. एदाओ तिण्णि वि अद्धाओ सरिसीओ ण होंति। किंतु पढमतिभागो बहओ, विदियतिभागो विसेसहीणो, तदियतिभागो विसेसहीणो त्ति घेत्तव्वो । जयध. प्र. पृ. ६९६०-६१ । २. संजलणाणमेयट्ठिदिबंधो अंतोमहत्तणद्ववस्समेत्तो । सेसाणं कम्माण पुग्विल्लट्ठिदिबंधादो संखेज्जगुणहीणो । क. चु. पृ. ७९८ । ३. अण्णं ट्ठिदिखंडयं चदुहं घादिकम्माणं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । णामा-गोद-वेदणीयाणमसंखेज्जा भागा । क. चु. पृ. ७९८ । ४. पढमसमयकिटीकारगो कोधादो पुव्वफद्दएहितो च अपुवफदएहितो च पदेसरगमोकड्यूिण कोहकिट्टीओ करेदि । माणादो ओकड्डियूण माणकिट्टीओ करेदि । मायादो ओकड्डियूण मायाकिट्टीओ करेदि | लोभादो ओकड्डियूण लोभकिट्टीओ करेदि । -क. चु. पृ. ७९८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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