________________
३६८
क्षपणासार
स० चं०-जिस अनुभागकांडकत्रिषै संक्रमण होइ तिस अनुभागकांडकका घात न होइ निवरै तावत समय समय प्रति अवस्थित समानरूप ही अनुभागका संक्रमण हो है। बहरि अन्य नवीन अनुभागकांडकका प्रारम्भ भएं पूर्वतै अनन्तगुणा घटता अनुभागका संक्रम हो है ।।४५६॥
इन पांच गाथानिका अर्थरूप व्याख्यान क्षपणासारविर्ष लिख्या नाहीं इहां जैसै प्रतिभास्या तैसैंअर्थ लिख्या है । बुद्धिमान होइ सो स्पष्ट अर्थ जैसा होइ तैसा जानियो ।
सत्तण्हं संकामगचरिमे पुरिसस्स बंधमडवस्सं । सोलस संजलणाणं संखसहस्साणि सेसाणं' ॥४५७।। सतानां संक्रामकचरमे पुरुषस्य बंधोऽष्टवर्षम् ।
षोडश संज्वलनानां संख्यसहस्राणि शेषाणाम् ॥४५७।। स० चं०-सात नोकषाय संक्रमक कालका अन्त समयविष पुरुषवेदका अन्त स्थितिबंध अष्टवर्ष प्रमाण हो है। बहुरि संज्वलन चतुष्कका सोलह वर्षमात्र अवशेष मोह आयु विना छह कर्मनिका संख्यात हजार वर्षमात्र स्थितिबन्ध हो है ॥४५७।।
ठिदिसंतं घादीणं संखसहस्साणि होंति वस्साणं । होंति अधादितियाणं वस्साणमसंखमेत्ताणि ।।४५८।। स्थितिसत्त्वं घातीनां संख्यसहस्राणि भवंति वर्षाणां ।
भवंति अधातित्रयाणां वर्षाणामसंख्यमात्राणि ॥४५८॥ स० चं०-तहां ही स्थितिसत्व है सो च्यारि घातियानिका संख्यात हजार वर्षमात्र अर तीन अघातिनिका असंख्यात वर्षप्रमाण जानना ।।४५८॥
पुरिसस्स य पढमहिदि आवलिदोसुवरिदासु आगाला । पडिआगाला छिण्णा पडिआवलियादुदीरणदा ॥४५९॥ पुरुषस्य च प्रथमस्थितौ आवलिद्वयोरुपरतयोरागालाः ।
प्रत्यागालाः छिन्नाः प्रत्यावलिकाया उदीरणता ॥४५९॥ स० चं० -पुरुषवेदकी प्रथम स्थितिविर्षे आवली प्रत्यावली ए दोय उवरै अवशेष रहैं आगाल प्रत्यागाल नष्ट भए। द्वितीय स्थितिविर्ष तिष्ठते परमाणूनिकों अपकर्ष वशतें प्रथम स्थिति
१. सत्तण्हं णोकसायाणं संकामयस्स चरिमो ठिदिबंधो पुरिसवेदस्स अट्ट वस्साणि, संजलणाणं सोलस वस्साणि, सेसाणं कम्माणं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि ठिदिबंधो । क० चु० पृ० ७५५ ।।
२. ठिदिसंतकम्मं पुण घादिकम्माणं चण्हं पि संखेज्जाणि वस्सहस्साणि, णामा-गोद-वेदणियाणमसंखेज्जाणि वस्साणि । क० चु० पृ० ७५५ ।
३. पुरिसवेदस्स दोआवलियासु पढमट्रिदीए सेसासु आगालपडिआगालो वोच्छिण्णो, पढमटिदीदो चेव उदीरणा । समयाहियाए आवलियाए सेसाए जहणिया ठिदिउदीरणा । क० चु० पृ० ७५५ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org