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स्थिति के अनुसारि कांडकघात हो है ऐसें दूसरा जघन्य कांडकतें दूसरा उत्कृष्ट कांडक तीसरात तीसरा इत्यादि सर्वत्र जघन्य कांडकतै उत्कृष्ट कांडक संख्यातगुणा जानना || ४०५ ॥
क्षपणासार
आउगवज्जाणं ठिदिघादो पढमादु चरिमठिदिसंती | ठिदिबंधो य अपुव्वे होदि हु संखेज्जगुणहीणी ||४०६॥
आयुष्कवर्ज्यानां स्थितिघातः प्रथमात् चरम स्थितिसत्त्वम् । स्थितिबंधरच अपूर्वे भवति हि संख्येयगुणहीनः ॥ ४०६ ॥
स० चं० - आयु विना सात कर्मनिका स्थितिकांडकायाम अर स्थितिसत्त्व अर स्थितिबंध ए तीनों अपूर्वकरणका प्रथम समयविषै जो पाइए है तिनितें ताके अन्त समयविषै संख्यातगुणे घाटि हो हैं ||४०६ ||
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अंतोकोडाकोडी अपुच्चपदमम्हि होदि ठिदिबंधो । बंधादो पुण सत्तं संखेज्जगुणं हवे तत्थं ॥ ४०७ |
अंतःकोटीकोटि : अपूर्वप्रथमे भवति स्थितिबन्धः । बन्धात् पुनः सत्त्वं संख्येयगुणं भवेत् तत्र ॥ ४०७॥
स० चं० - अपूर्वकरणका प्रथम समयविषै स्थितिबंध अन्तः कोटाकोटी प्रमाण है सो पृथक्त्व क्ष कोड सागरप्रमाण है । बहुरि तहां स्थितिसत्त्व आलाप करि तितना ही है, तथापि स्थितिबंध संख्यातगुणा है । ऐसें स्थितिकांडक का स्वरूप कह्या ||४०७ ||
एक्क्कडिदिखंडयणिवडणठिदिओसरणकाले ।
संखेज्जसहस्साणि य णिवंडति रसस्स खंडाणि ॥ ४०८ ॥
एकैकस्थितिखंड कनिपतनस्थित्यपसरणकाले । संख्येयसहस्राणि च निपतंति रसस्य खंडानि ॥ ४०८ ॥
स० चं० — एकस्थितिखंडनिपतन कहिए स्थितिकांडकघात जाविषै होइ ऐसा स्थितिकांडकोत्करण काल तीहि विषै संख्यात हजार अनुभागकांडकनिका निपतन कहिए घात हो है । भावार्थ हु — अपूर्वकरणका प्रथम समयविषै स्थितिकांडकका अर अनुभागकांडकका युगपत् प्रारम्भ भया । तहां यथायोग्य काल गएं प्रथम अनुभागकांडक पूरा भया अर स्थितिकांडक सोई है | बहुरि अनुभागकांडक दूसरा भया, बहुरि तीसरा भया ऐसें संख्यात हजार अनुभागकांडक भएं प्रथम स्थितिकांडकका काल पूर्ण हो है । ऐसें ही द्वितीयादि स्थितिकांडक कालनिविषै क्रम
जानना ||४०८||
१. तदो द्विदितकम्मं द्विदिबंधो च सागरोवमकोडिसदसहस्सपुधत्तमंतोकोडीए । बंधादो पुण संतकम्मं संखेज्जगुणं । वही पृ० ७४२ । ६० पु० ६, पृ० ३४५ ।
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