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________________ अल्पबहुत्व निर्देश चडमाणअपुव्वस्स य चरिमट्ठिदिसत्तयं विसेस हियं । तस्सेव य पढमठिदीसत्तं संखेज्जसंगुणियं ॥ ३९१ ॥ चटदपूर्वस्य च चरमस्थितिसत्त्वकं विशेषाधिकम् । तस्यैव च प्रथमस्थितिसत्त्वं संख्येयगुणितम् ॥३९१ ॥ सं० टी० - तत आरोहका पूर्वकरणचरम समये स्थितिसत्त्वं विशेषाधिकं प्रणमामि महावीरं सर्वशांतिकरं जिनं । प्रशांतदुरितानीकं शांतये सर्वकर्मणां ॥ Jain Education International चरमफालिप्रमाणस्य पल्यसंख्यात भागस्य सम्भवात् । तत आरोहकापूर्वकरणप्रथमसमयस्थितिसत्त्वं संख्यातगुणं सा अं को २ तच्चांत कोटी कोटिसागरोपमप्रमितं । अपूर्वकरणकाले सम्भवि संख्यात सहस्रमात्रस्थितिकांडकघातवशेन तत्प्रथमसमयस्थितिसत्त्वसंख्यातवहुभागेषु घातितेषु यत्तच्च रमसमयस्थितिसत्त्वं संख्यातैकभागमात्रं । तस्मात्तत्प्रथमसमयस्थितिसत्त्वस्य पूर्वस्थितिकांडकघाताभावात् संख्यातगुणत्वसम्भवात् ।।३९१॥ प 2 सा अंतःको २ ३३१ तच्चरमकाण्डक एवं चारित्रमोहोपशमनविधानं समाप्तं । सं० चं०—तातैं चढनेवाले अपूर्वकरणका अंत समयविषै स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है जातै तिसके अंत कांडककी अंत फालिका प्रमाण पल्यके संख्यातवें भागमात्र संभव है सो इतना अधिक जानना । जातैं चढनेवाले अपूर्वकरणका प्रथम समयविषै स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है । सो अंतःकोटाकोटोप्रमाण है । जातैं अपूर्वकरणका कालविषै संख्यात हजार स्थितिकांडक हो है तिनकरि ताका प्रथम समयविषै जो स्थिति पाइए ताका संख्यात बहुभागमात्र स्थितिका घात हो हैं । ताका अंत समयविषै एकभागमात्र स्थिति रहै है । अर तिस प्रथम समयवर्ती स्थितिसत्त्वतें पहले स्थितिकांडकका घात है नाहीं तातैं ताका चरम समयवर्ती स्थितिसत्त्वतैं प्रथम समयवर्ती स्थिति संख्यातगुणा जानना || ३९१ || ऐसे अल्पबहुत्व जानना ॥ ३९१ || दोहा - कर्म शांतिके अर्थ जिन नमौ शांति करतार | प्रशमित दुरित समूह सब महावीर जिनसार ॥ १ ॥ या प्रकार चारित्रमोहके उपशमावनेका विधान समाप्त भया । इति लब्धिसारः समाप्तः । For Private & Personal Use Only १. उवसामगस्स अपुव्वकरणस्स चरिमसमये ठितिसंतकम्मं विसेसाहियं । उवसामगस्स अपुव्वकरणस्स पढमसमये ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । वही, पृ० १९३८ । www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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