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________________ प्रकृतमें कृष्टियोंके सम्बन्धमें विचार २७९ मध्यमकृष्टयः उदयमागच्छन्ति । तत्र ऋणात् ४ २ अस्माद्धनमिदं ४ ३ अभ्यधिकमिति धनार्ण ख प ५प ख प ५ प aa aa योविवरे शेष ४१ प्रमाणन प्रथमसमयोदयकृष्टिभ्यो द्वितीयसमयोदयकृष्टयो विशेषाधिका ४ प एवं ख प ५ प ख पa aa तृतीयादिसमयेष्वपि तच्चरमसमयपर्यन्तेष विशेषाधिकाः कृष्टयः उदयमागच्छन्ति अत एव प्रतिसमयमनन्तगुणानुभागोदयः कृष्टीनां ज्ञातव्यः । एवमनेन क्रमेण सूक्ष्मसाम्परायकालो गतः ॥३१४॥ स० चं०-अवरोहक सूक्ष्मसाम्परायका द्वितीयादि समयनिविषै समय-समय प्रति प्रथमादि समय सम्बन्धीत असंख्यातगुणा घाटि क्रम लीए द्रव्यकौं अपकर्षण करि गुणश्रेणि करै है। अर प्रशस्त प्रकृतिनिका अनंतगुणा घाटि क्रम लीएं अर अप्रशस्त प्रकृतिनिका अनंतगुणा बंधता क्रम लोए अनुभाग बंध हो है । जातै इहां समय-समय विशुद्ध संक्लेशको अनंतगुणी हानि वृद्धि हो है। या उपशमश्रणी चढनेसे उतरनेविषै विपरीतपना कया है। बहुरि स्थितिबंध है सो तिस प्रथम समयतै लगाय अंतमुहूर्त पर्यंत समान ही है । बहुरि अंतमुहूर्त अंतमुहूर्तविषै आरोहकके स्थितिबंधौ यथा ठिकाणे अवरोहककै दूणा स्थितिबंध सूक्ष्मसाम्परायका अंतसमय पर्यंत जानना। चढतै जिस ठिकाने जो स्थितिबध होता था तातें उतरतें उस ठिकानैं आय दूणा स्थितिबंध हो है। जेसैं स्थितिबंधापसरणकरि चढतै स्थितिबंध घटाइ एक-एक अंतर्मुहूर्तविष समान बंध करै था तैसै इहाँ स्थितिबंधोत्सरणकरि स्थितिबंध बधाइ एक-एक अंतमहर्तविर्षे समान बंध करै है। बहरि अवरोहक सूक्ष्मसाम्परायका प्रथम समयवि उदय आया जे निषेक कृष्टि पाइए है तिनकौं पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग दीजिए तहाँ बहुभागमात्र बीचिकी कृष्टि उदय आवै है। अर अवशेष एक भागकौं पल्यका असंख्यातवाँ भागकी सहनानी पाँचका अंक ताका भाग दोएं तहाँ दोय भागमात्र तो आदि कृष्टितै लगाय जे नीचेको कृष्टि हैं ते अनुदयरूप हैं अर तीन भागमात्र अंत कृष्टिनै लगाय जे ऊपरिकी कृष्टि हैं ते अनुदयरूप कृष्टि कहीं । ते अपने स्वरूपकौं छोडि जे आदि कृष्टिनै लगाय नीचली कृष्टि हैं ते तो अनंतगुणा अनुभागरूप परिणमि मध्यम कृष्टिरूप होइ उदय आवै हैं । अर अंत कष्टितै लगाय जे ऊपरिकी कृष्टि हैं ते अनंतवें भागि अनुभागरूप परिणमि मध्यम कृष्टिरूप होइ उदय आवें हैं। अंक संदृष्टिकरि जैसैं उदय आया निषेकवि कृष्टि हजार तिनकौं पाँचका भाग दीए बहुभागमात्र आठसै वीचिकी कृष्टि तौ उदयरूप जाननी। अवशेष एक भाग दोयसै ताकौं पाँचका भाग देइ तहाँ एक भाग जुदा राखि अवशेषके दोय भागकरि तहाँ एकभागमात्र असी कृष्टि तो जघन्य कृष्टिनै लगाय नीचेकी कृष्टि अनुदयरूप हैं ते अनुभाग बंधनेते मध्यम कृष्टिरूप होंइ परिणमि उदय हो हैं। बहुरि एक भागविषै जुदा राख्या भाग मिलाएं एकसौ बीस कृष्टि भई ते अंत कृष्टिनै लगाय ऊपरिकी कृष्टि अनुदयरूप हैं ते अनुभाग घटनेते मध्यम कृष्टिरूप होइ उदय आवै हैं ऐसा अर्थ जानना। ___ बहुरि दूसरा समयविर्षे जे आदि कृष्टि पहले समय उदयरूप न थीं तिनकौं पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग दीए एक भागमात्र नवीन कृष्टि अनुदयरूप करी अर अंतकी कृष्टि जे पहले समय उदयरूप न थीं तिनकौं पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग दीए एक भागमात्र कृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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