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________________ सूक्ष्मकृष्टियोंके उदयादिके सम्बन्धमें विचार २६३ नानुदयकृष्टिपल्यासंख्यातेकभागमात्रापूर्वकृष्टीः ४ २ आस्पृशति अवष्टभ्य गृह णातीत्यर्थः, तावन्मात्र्यः ख प ५ प aa कृष्टयः उदयमागच्छन्तीत्युक्तं भवति । एवं द्वितीयसमये उदयकृष्टयः प्रथमसमयोदयकृष्टिभ्यो विशेषहीनाः अवष्टभ्य गृहीताः कृष्टीरेताः-४ २ उक्तकृष्टिष्वेतासु ४ ३ विशोध्यावशिष्टेन प्रथमसमयानुदय ख प ५ प ख प ५ प а а аа कृष्टिपल्यासंख्यातकभागमात्रेण ४ १ विशेषेण हीना द्वितीयसमयोदयकृष्टय इत्यर्थः । एवं तृतीयादि ख प ५प aa ममयेषु सूक्ष्मसांपरायचरमसमयपर्यन्तेषु पूर्वपूर्वहानिविशेषपल्यासंख्यातकभागमात्रविशेषेण हीनाः कृष्टयः प्रतिसमय मुदयमागच्छन्तीति ज्ञातव्यम् ॥२९८।। द्वितीयादि समयोंमें कृष्टि सम्बन्धी निर्देश स० चं०-सूक्ष्मसांपरायका द्वितीय समयविषै जे प्रथम समयविष उदयरूप कृष्टि हैं तिनकी अंत कृष्टि” लगाय कृष्टिनिकौं छोड़े है । उदयों प्राप्त न करै है। तिनका प्रमाण प्रथम समयविषै हीन शक्तिरूप होने योग्य जे ऊपरिकी कृष्टि अनुदयरूप कहीं थी तिनके प्रमाणकौं पल्यका असख्यातका भाग दीए एक भागमात्र जानना। इतनी नवीन ऊपरिकी कृष्टि इहाँ उदय रूप न हो हैं। ए कृष्टि अनंतगुणा घटता अनुभागरूप परिणमि अन्य नोचली कृष्टिरूप परिणमि उदय आवै हैं । और प्रकार समय समय उदय कृष्टिनिका अनन्तगणी शक्तिनिका घटना न बने है। बहरि प्रथम समयविषै अनंतगणां शक्ति रूप परिणमने योग्य जे अधस्तन अनुदयरूप कृष्टि हैं तिनकौं पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग दीए तहाँ एक भाग प्रमाण नीचेंकी नवीन कृष्टि जे प्रथम समयविषै उदय न थीं ते उदयरूप हो हैं। ऐसें होतें प्रथम समयविषै उदयरूप कृष्टिनिका प्रमाणत द्वितीय समयविष उदयरूप कृष्टिनिका प्रमाण किछू विशेषकरि घटता जानना । इहाँ नवीन उदयरूप करी कृष्टिनिका प्रमाणकौं नवीन अनुदयरूप करी कृष्टिनिका प्रमाणविषै घटाएँ अवशेष प्रमाण प्रथम समयविषै अनुकृष्टिकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीए एक भागमात्र हैं । सो इतना प्रथम समयकी उदय कृष्टिका प्रमाणतें द्वितीय समयकी उदय कृष्टिका प्रमाण घटता जानना । इहाँ ऐसा अर्थ जानना इस सूक्ष्मसांपरायका द्वितीय समयविर्षे जे प्रथम समयविष अनुदयरूप कृष्टि कहीं थीं तिनविष अंत कृष्टिनै लगाय इहाँ जेता प्रमाण कह्या तितनी कृष्टि उदयरूप न हो हैं। ते अनंत गुणी घटती जे मध्यम कृष्टि तिनरूप परिणमि उदय हो हैं। बहुरि तिस प्रथम समयविष जे नीचेकी अनुदय कृष्टि कहीं थीं तिनविषै अंत कृष्टिनै लगाय इहाँ जेता प्रमाण कह्या तितनी कृष्टि उदय रूप हो हैं । अंकसंदृष्टिकरि जैसैं प्रथम समयविष उदय कृष्टि आठसै थी तिनविषै प्रथम समयविषै Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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