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________________ २५६ लब्धिसार बादरलोभादिस्थितौ आवलिशेषे त्रिलोभमुपशांतं । नवकं कृष्टि मुक्त्वा स चरमः स्थूलसांपरायो यः ॥२९५।। सं० टी०.-संज्वलनवादरलोभस्य प्रथमस्थितौ उच्छिष्टावलिमात्रेऽवशिष्टे उपशमनावलिचरमसमये लोभत्रयद्रव्यं सर्वमप्युपशमितं भवति तत्र सूक्ष्मकृष्टिगतद्रव्यं समयोनद्यावलिमात्रसमयप्रबद्धनवकबंधद्रव्यं उच्छिष्टावलिमात्रनिषेकद्रव्यं च नोपशमयति । एतद्रव्यत्र मुक्त्वा लोभत्रयस्य सर्वमपि सत्त्वद्रव्यमुपशमितमित्यर्थः । स एव कृष्टिकरणकालचरमसमये वर्तमानोऽनिवृत्तिकरणश्चरमसमयबादरसांपराय इत्युच्यते ।।२९५॥ लोभत्रयकी उपशमनविधिका निर्देश स० चं०-बादर लोभकी प्रथम स्थितिविषै उच्छिष्टावलीमात्र अवशेष रहैं उपशमनावलीका अंतसमयविषै तीनों लोभका सर्व द्रव्य उपशमरूप भया है। तहाँ विशेष जो सूक्ष्म कृष्टिकौं प्राप्त भया द्रव्य अर समय घाटि दोय आवलीमात्र नवक समयप्रबद्धनिका द्रव्य अर उच्छिष्टावलीमात्र निषेकनिका द्रव्य नाही उपशम्या है, अवशेष उपशम्या है। ऐसे कृष्टि करण कालका अंत समयवर्ती जीवकौं चरम समयवर्ती अनिवृत्ति वादर सांपराय कहिए। या प्रकार अनिवृत्ति करणका स्वरूप कह्या ॥२९५।। _ विशेष-जब प्रत्यावलिमें एक समय शेष रहता है उसी समय लोभ संज्वलनका स्पर्धकगत सभी प्रदेश पुंज तथा पूराका पूरा अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यानरूप दोनों प्रकारका लोभ उपशान्त हो जाता है। मात्र एक समय कम दो आवलि-प्रमाण नवक समयप्रबद्ध द्रव्य, उच्छिष्टावलिमात्र निषेक द्रव्य और सूक्ष्म कृष्टिगत द्रव्य उपशान्त नहीं होता। उसमेंसे सूक्ष्म कृष्टिगत द्रव्यको सूक्ष्म साम्परायमें उपशमाता है। इस प्रकार कृष्टिकरणके अन्तिम समय तक बादर साम्पराय गुणस्थान वर्तता है। अथ सूक्ष्मसांपरायगुणस्थाने क्रियमाणकार्यविशेषप्रतिपादनार्थमाह से काले किट्टिस्स य पढमद्विदिकारवेदगो होदि । लोहगपढमठिदीदो अद्धं किंचूणयं गत्थ' ।।२९६।। स्वे काले कृष्टश्च प्रथमस्थितिकारवेदको भवति । लोभगप्रथमस्थितितः अर्धं किंचिदूनकं गत्वा ॥२९६॥ सं० टी०--अनिवत्तिकरण कालसमाप्त्यनंतरसमये प्रथमसमयतिसुक्ष्मसांपरायः अंतर्महर्तमात्रस्थिति स्थितसकलसूक्ष्मकृष्टिद्रव्यादस्मात् स a १२-१२१ अपकर्षणभागहारखंडितय.भागमात्रद्रव्यं गृहीत्वा ७।८ । ओप १. से काले पढमसमयसुहमसांपराइयो जादो। तेण पढमसमयसूहमसांपराइएण अण्णा पढमट्टिदी कदा । जा पढमसमयलोभवेदगस्स पढमट्टिदी तिस्से पढमट्टिदीए इमा सुहमसांपराइयस्स पढमदिदी दुभागो दोऊणाओ। वही पृ० ३१८-२२० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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