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________________ लब्धिसार कृष्टिकरण काल में स्थिति बन्धका विचार - स० चं० – संज्वलन लोभको प्रथम स्थितिका द्वितीय अर्धमात्र जो कष्टि करण काल ताकौं संख्यातका भाग दीएँ तहाँ बहुभाग व्यतीत होतैं अंतसमयविषै संज्वलन लोभका अंतर्मुहूर्तमात्र अर तीन घातियानिका पृथक्त्व दिनमात्र स्थिति बंध हो है || २९१ ॥ २५४ कट्टीकरणद्वाए जाव दुरिमं तु होदि ठिदिबंधो । वस्साणं संखेज्जसहस्साणि अघादिठिदिबंधो' || २९२।। कृष्टिकरणाद्वाया यावत् द्विचरमं तु भवति स्थितिबंध: । वर्षाणां संख्येयसहस्राणि अधातिस्थितिबंध: ॥ २९२॥ सं० टी० - कृष्टिकरणकालस्य द्विचरमसमयं यावत्रघातित्रयस्य पूर्णवत्संख्यातसहस्रवर्षमात्र एव स्थितिबंध: । एवमुक्ताः संज्वलनलोभादीनां स्थितिबंधाः कृष्टिकरणकालविचरमसमयपर्यतं समबंधा एव गच्छति ॥ २९२ ॥ स० चं० - कृष्टि करण कालका यावत् द्विचरम समय प्राप्त होइ तावत् तीन अघातिया कर्मनिका स्थितिबंध यथासम्भव संख्यात हजार वर्षमात्र है । बहुरि संज्वलन लोभादिकनिका भी स्थिति बंध है सो तिस द्विचरम समय पर्यंत पूर्वोक्त प्रमाण लीएँ समानरूप ही जानना || २९२॥ किट्टीया चरिमे लोभस्सं तो मुहुत्तियं बंधो । दिवसंतो घादीणं वेवस्संतो अघादी || २९३ ।। कृष्टचद्धाचरमे लोभस्यांतर्मुहूर्तकं बंधः । दिवसांतः घातिनां द्विवर्षतोऽघातिनाम् ॥२९३॥ सं० टी० - कृष्टिकरणकालस्य चरमसमये संज्वलन लोभस्य स्थितिबंध: अनंतरातीतस्थितिबंधासंख्यातगुणहीनोऽप्यंतर्मुहूर्तमात्र एव २ २ घातित्रयस्यानंत रातीत स्थितिबंधात्संख्यातगुणहीनोप्येक दिवसस्यांतरे एव न समो नाप्याधिक इत्यर्थः तीत दि १ - अघातित्रयस्यानंत रातीतबंधात्संख्यातगुणहीनोऽपि वर्षद्वयस्थांतरे एव न समो नाप्याधिक इत्यर्थः वी व २ - वे व २ - ३ । एते उपशमकानिवृत्तिकरणचरमसमयस्थितिबंधाः २ क्षपकानिवृत्तिकरण चरमसमय लोभादिस्थितिबंधेभ्यो द्विगुणप्रमाणा इति ग्राह्यम् ।।२९३ ।। स० चं० - कृष्टि करणकालका अंतसमयविषै पूर्व स्थितिबंधतें संख्यातगुणा घाटि संज्वलन लोभका अंतर्मुहूर्तमात्र अर तीन घातियानिका दिवसांत कहिए एक दिन किछू घाटि अर तीन अघातियानिका द्विवर्षांत कहिए दोय वर्षं किछू घाटि स्थिति बंध हो है । ए उपशमक अनिवृत्ति Jain Education International १. जाव किट्टीकरणद्धाए दुचरिमो द्विदिबंधो ताव णामा- गोद-वेदणीयाणं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि बिंघ | वही पृ० ३१६ | २. किट्टीकरणद्धाए चरिमो द्विदिबंधो लोहसंजलणस्स अंतोमुहुत्तिओ । णाणावरण- दंसणावरण-अंतराइयाणमहोरत्तस्संतो । णामा - गोद-वेदणीयाणं वेण्हं वस्साणमंतो । वही पृ० ३१६-३१७ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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