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I १-1
व १२३४ ४
ओप । ख ख २
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ख
१०
। १६ – ४
संक्रमित द्रव्यका विभागीकरण
सर्वजघन्यकृष्टी सर्वकृष्ट्यायाममात्रविशेषान्निक्षिप्य द्वितीयादिकृष्टिब्वेकैक
ख २
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विशेषहीनक्रमेण निक्षिप्य सर्वच रमकृष्टाववशिष्टैकविशेषमात्रं व १२ १ - निक्षिपति । एवं निक्षिप्ते
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व १२४ = १६
1 १___ ००००० ओ प ४ १६-४ 8 ख
ख२
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ओ प ४१६-४
a ख
द्वितीयसमयकृत कृष्टिद्रव्यं अधस्तनशीर्वाधस्तनकृष्ट युभय विशेष गुण का रभूतासंख्यातोपरिष्यैकरूपसम्बन्धिविशेषद्रव्यैस्त्रिभिन्नं पूर्वापूर्वकृष्टयायामसहितैकगोपुच्छाकारं भवति
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१.
व १२ ३ = १६ -४
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१. ख
भोप ४१६ 8 ख
ख २
।।२८८ ।।
२४९
-४
अस्मिन् प्राक्तनगोपुच्छद्रव्यस्योपरि स्थापिते प्रथम द्वितीयसमयकृत कृष्टिद्रव्यं सर्वमप्येक गोपुच्छाकारं दृश्यं भवति । पूर्वाचार्यः सर्वत्र तथैव सम्मतत्वात् । तन्न्यासः -
ख२
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स० चं० - दूसरे समयविषै कीनी जे अपूर्वकृष्टि तिनविषै जो जघन्य कृष्टि है तिसविषै तो बहुत द्रव्य दीजिए है । बहुरि द्वितीय अपूर्व कृष्टितैं लगाय अपूर्वं कृष्टिकी अंत कृष्टि पर्यंत क्रमते चय घटता क्रमकरि निक्षेपण करे है । बहुरि तातें पूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणाविषै निक्षेपण
या द्रव्य अनंतगुणा घटता है । तातैं परं ताकी द्वितीयादि वर्गणा जे नाना गुणहानि सम्बन्धी अंतगुणानिकी अंतवर्गणा पर्यंत हैं तिनविषै अपनी अपनी गुणहानिविषै सम्भवता चय घटता क्रमकरि निक्षेपण करे है । सो इहाँ याकौं विशेष करि दिखाइए है
तहाँ द्वितीय समयविषै अपकर्षण कीया द्रव्यविषे जो कृष्टि सम्बन्धी द्रव्य है ताकों पूर्व अपूर्वं कृष्टनिविषै निक्षेपण करनेका विधान श्रीमाधवचंद्र गुरुके अनुसार कहें हैं - द्वितीय
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