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________________ कृष्टिगत द्रव्यके विभागका निर्देश २४३ अधस्तन कृष्टि द्रव्य है । इस द्रव्यकौं दीएं अपूर्व कृष्टि हैं ते प्रथम पूर्व कृष्टिके समान हो हैं याका प्रमाण ल्याइए है पूक्ति पूर्व कृष्टिसंबंधी चय ताकी दो गुणहानिकरि गुणें पूर्व कृष्टिनिविष प्रथम कृष्टिके द्रव्यका प्रमाण आवै है । सो एक कृष्टिका इतना द्रव्य होइ तौ सर्व पूर्व कृष्टिनिका केता होइ ऐसें त्ररांशिककरि तिस प्रथम पूर्व कृष्टिका द्रव्यकौं सर्व अपूर्व कृष्टिनिका प्रमाणकरि गुणें अधस्तन कृष्टि द्रव्यका प्रमाण हो है। इहां प्रथम समयविर्ष कोनी कृष्टिनिका प्रमाणकौं असंख्यातगुणा अपकर्षण भागहारका भाग दीएं द्वितीय समयविष कोनी कृष्टिनिका प्रमाण हो है ऐसा जानना । बहुरि पूर्वोक्त अधस्तन शीर्षविशेष द्रव्य अर अधस्तन कृष्टि द्रव्य दीएं सर्व पूर्व अपूर्व कृष्टि समान प्रमाण लीएं भई, तहां अपूर्व कृष्टिकी प्रथम कृष्टिनै लगाय उपरि उपरि अपूर्व कृष्टि स्थापि तिनके ऊपरि प्रथमादि पूर्व कृष्टि स्थापनी ऐसे स्थापि तिनका चय घटता क्रमरूप एक गोपुच्छ करनेके अर्थि सर्वकृष्टिसंबंधी संभवता चयका प्रमाण ल्याइ अंतकी पूर्व कृष्टिविषै एक चय ताके नीचें उपांत पूर्व कृष्टिविष दोय चय ऐसै क्रमतें एक एक चय बंधता प्रथम अपूर्व कृष्टि पर्यंत द्रव्य देना । याका नाम उभय द्रव्य विशेष द्रव्य है। याकौं दोएं सर्व पूर्व अपूर्व कृष्टिनिका चय घटता क्रमरूप एक गोपुच्छ हो है याका प्रमाण ल्याइए है पूर्व समयनिविषै जो कृष्टिनिविषै दीया द्रव्य था अर इस विवक्षित समयविषै जो कष्टिनिविष देने योग्य द्रव्य है इन दोऊनिकौं मिलाएँ जो द्रव्यका प्रमाण भया ताकौं पूर्व कृष्टिनिका अर अपूर्व कृष्टिनिका प्रमाण मिलाएँ जो गच्छ होइ ताका भाग दीएँ मध्यधन आवै है। ताकौं एक घाटि गच्छका आधा प्रमाण करि हीन जो दोगुणहानि ताका भाग दीए इहाँ चय जो एक विशेष ताका प्रमाण हो है । सो एक चय आदि स्थापि अर एक चय उत्तर स्थापि अर अपूर्व कृष्टि प्रमाण गच्छ स्थापि ‘पदमेगेण विहीणं' इत्यादि सूत्रके अनुसारि एक घाटि गच्छका आधाकौं चयकरि गुणि तामैं चय मिलाय ताकौं गच्छकरि गुणे सर्व उभय द्रव्य विशेष द्रव्य हो है। बहुरि जो विवक्षित समयविष कृष्टिरूप परिणमावने योग्य द्रव्य अपकर्षण कीया तीहिंविषै पूर्वोक्त अधस्तन शोर्षविशेष द्रव्य अर अधस्तन कृष्टि द्रव्य अर उभय द्रव्यविशेष द्रव्य घटाएं अवशेष द्रव्य रहया ताकौं सर्व पूर्व अपूर्व कृष्टिनिविष समान भागकरि देना । याका नाम मध्यम खंड द्रव्य है। बहुरि याकों दाएँ तिस अपकर्षण द्रव्यको तौ समानता हो है अर सर्व पूर्व अपूर्व कृष्टिनिविर्ष चय घटता क्रमरूप ज्यूका त्यू' रहै है । याका प्रमाण ल्याइए है विवक्षित समयविषै अपकर्षण कीया द्रव्यकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दोए एक भागमात्र द्रव्य कृष्टिनिविष देने योग्य है। तीहिविषै पूर्वोक्त तीन प्रकार द्रव्य घटाएं किंचिदून भया सो इतना द्रव्य सर्व कृष्टिनिविष दीजिए तो एक कृष्टिवि केता दीजिए ऐसें त्रैराशिककरि तिस द्रव्यकौं पूर्व अपूर्वकृष्टिनिके प्रमाणका भाग दीएं एक कृष्टिविषै देने योग्य एक खंडका प्रमाण हो है। याकौं सर्वकृष्टि प्रमाणकरि गुण सर्व मध्यमखंड द्रव्यका प्रमाण हो है। याप्रकार इहां विवक्षित द्वितीय समयविर्षे कृष्टिरूप होने योग्य द्रव्यवि बुद्धिकल्पनाते ते अधस्तनशीर्ष विशेष आदि च्यारि प्रकार द्रव्य जुदे स्थापे । जैसे ही इहां तृतीयादि समयनिविष कृष्टिरूप होने योग्य द्रव्यविर्षे विधान जानना । वा आगें क्षपक श्रेणीका वर्णनविर्षे अपूर्व स्पर्धकनिका वादरकृष्टिनिका वा सूक्ष्मकृष्टिनिका वर्णन करते असे विधान कहेंगे तहाँ ऐसा ही अर्थ समझना। विशेष होइ सो www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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