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________________ २४२ लब्धिसार व १२ a = अस्मिन् सर्वेषां मध्यभखंडानां सदृशत्वात् पूर्वापूर्वकृष्टिद्वयायामेन गुणिते समस्तमध्यमखडद्रव्यद्वयं ओ प ४ ख भवति व १२ 2E ४ इदमन्यत्र संस्थाप्यम् ॥२८६।। ओ प ४ aख कृष्टिगत द्रव्योंके विभागका निर्देश स.चं०-कृष्टिकरण कालका दूसरा समयविषै अपकर्षण कीया द्रव्य ताकौं अधस्तन शीर्ष विशेषनिविषै उभय द्रव्य विशेषनिविषै अधस्तन कृष्टिनिविषै मध्यम खंडनिविषै च्यारि प्रकार विभागकरि निक्षेपण करै है । सोई कहिए है पूर्व समयविषै कीनी जे कृष्टि तिनिविर्षे प्रथम कृष्टिविषै तो बहुत परमाणू है । अर द्वितीयादिकृष्टिनिविर्षे एक एक चय घटता क्रम लीए है। तहाँ पूर्व कृष्टिविषै संभवता चयका प्रमाण ल्याय द्वितीय कृष्टिविष एक चय अर तृतीय कृष्टिविषै दोय चय ऐसे क्रम” एक एक बंधता चयप्रमाण परमाणू तिन द्वितीयादि कृष्टिनिविर्षे मिलाएँ सर्व कृष्टि हैं ते प्रथम कृष्टिके समान होइ सो ऐसें जेता द्रव्य दीया ताका नाम अधस्तन कृष्टि द्रव्य है। याकौं दीएं सर्व पूर्व कृष्टि प्रथम कृष्टिके समान हो है । सो इस द्रव्यका प्रमाण ल्याइए है पूर्व समयविषै जो कृष्टिविषै द्रव्य दीया ताकौं पूर्व समयविषै कीना जे कृष्टि तिनका प्रमाणमात्र जो गच्छ ताका भाग दीएँ मध्यधन आवै है। ताकौं एक घाटि गच्छका आधा प्रमाण करि होन जो दोगुणहानि ताका भाग दीएँ चय जो एक विशेष ताका प्रमाण आवै है। तहाँ एक चयकौं आदि विषै स्थापना जातै द्वितीय कृष्टिविषै एक चय देना है। बहुरि एक चय उत्तर स्थापना जातें तृतीयादि कृष्टिनिविर्ष एक एक चय बँधता देना है। बहुरि एक घाटि पूर्व कृष्टि प्रमाण गच्छ स्थापना जातै प्रथम कृष्टिविषै चय नाहीं मिलावना है। ऐसे स्थापि “पदमेगेण विहणि" इत्यादि श्रेणि व्यवहाररूप गणित सूत्रकरि एक घाटि गच्छकौं दोयका भाग देइ ताकौं उत्तर जो एक चय ताकरि गुणि तामैं प्रभव जो आदि एक चय ताकौं मिलाय बहुरि गच्छकरि गुण चय धन आवै है । अंक संदृष्टिकरि जैसैं एक घाटि कृष्टिप्रमाण गच्छ सात तामैं एक घटाएं छह ताकौं दोयका भाग दोएं तीन ताकौं चयका प्रमाण सोलह करि गुणें अठतालीस यामैं प्रभव जो एक चय सोलह ताकौं मिलाएं चौसठि याकौं गच्छ सातकरि गुणे च्यारिसै अठतालीस चय धन होइ । तैसैं विधानत जो प्रमाण आवै तितना अधस्तन शीर्ष विशेष द्रव्य जानना। बहरि जो पूर्व कृष्टिनिविषै प्रथम कृष्टि ताका प्रमाण था ताहोके समान प्रमाण लीए जे विवक्षित समयविष अपूर्व कृष्टि करी तिनिविष जो समान प्रमाण लीएं समपट्टिकारूप द्रव्य देना। ताका नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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