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________________ अपगतवेदके प्रथम समयमें स्थितिबन्धका निर्देश २२३ सम्भव है। यह एक प्रश्न है। समाधान यह है कि बन्धकी व्युच्छित्ति हो जानेपर भी पुरुषवेद और तीन संज्वलन आदिके नवक बन्धका अधःप्रवृत्त संक्रम होता है ऐसा स्वीकार किया गया हैं । संक्रम विधिका खुलासा इस प्रकार है-पहले समयमें विवक्षित समयप्रबद्धमेंसे जितने द्रव्यका संक्रम और उपशम हुआ उतने द्रव्यको उस समयप्रबद्धमेंसे कम कर दूसरे समयमें जो बहुभागप्रमाण द्रव्य शेष बचा उसमें अधःप्रवृत्तसंक्रमका भाग देनेपर जो एकभाग प्राप्त होता है उसका उस दूसरे समयमें संक्रम करता है। इसी प्रकार तृतीयादि समयोंमें भी जान लेना चाहिए। यह संक्रम प्रकृतमें एकसमयप्रबद्धकी अपेक्षा स्वीकार किया गया है, नाना समयप्रबद्धोंकी अपेक्षा नहीं, इसलिए यहाँ योगके अनुसार चार वृद्धि और चार हानि सम्भव न होकर उत्तरोत्तर विशेषहीन होकर ही संक्रम होता है ऐसा स्वीकार किया गया है। अथापगतवेदस्य प्रथमसमये स्थितिबन्धप्रमाणप्रदर्शनार्थमिदमाह पढमावेदे संजलणाणं अंतोमुहुत्तपरिहीणं । बस्साणं बत्तीसं संखसहस्सियरगाण ठिदिबंधो' ।। २६७ ॥ प्रथमावेदे संज्वलनानां अन्तमुहर्तपरिहीनम् ।। वर्षाणां द्वात्रिंशत् संख्यसहस्रमितरेषां स्थितिबन्धः ॥ २६७ ॥ सं० टी०-प्रथमसमयवर्तिन्यपगतवेदे संज्वलनक्रोधादिचतुष्टयस्य स्थितिबन्धोऽन्तमुहूर्तहीनो द्वात्रिंशद्वर्षप्रमितः। सदचरमसमयवर्तिनः प्राक्तनस्थितिबन्धात्संपूर्णद्वात्रिंशद्वर्षमात्र दन्तमुहूर्तस्थितिबन्धापस रणवशेनापगतवेदप्रथमसमये एवंविधस्थितिबन्धस्य युक्तत्वात् । शेषकर्मणां तीसियवीसियवेदनीयानां प्राक्तनस्थितिबन्धासंख्यातगुणहीनः स्थितिबन्ध: संख्यातसहस्रवर्षमात्र एव पूर्वोक्ताल्पबहत्वविधानेन ज्ञातव्यः ।। २६७ ।। अपगतवेदीके प्रथमसमयमें स्थितिबन्धसम्बन्धी विधान सं० चं०-अपगतवेदका प्रथम समयविष संज्वलन चतुष्कका तौ अन्तर्मुहूर्त घाटि बत्तीस वर्षमात्र स्थितिबन्ध है जातें बत्तीस वर्ष स्थिति थी तामैं एक बार स्थितिबन्धापसरण करि अन्तमुहूर्त घटया । बहुरि अन्य कर्मनिका पूर्वस्थिति बन्ध” संख्यातगुणा घटता पूर्वोक्त प्रकार हीनाधिक क्रम लीएं संख्यात हजार वर्षमात्र स्थितिबन्ध हो है ॥ २६७ ।। अथापगतवेदस्य संभवत्क्रियान्तरप्रदर्शनार्थ गाथाद्वयमाह पढमावेदो तिविहं कोहे उवसमदि पुव्वपढमठिदी । समयाहियआवलियं जाव य तक्कालठिदिबंधो' ।। २६८ ॥ १. पढमसमयअवेदस्स संजतणाणं दिदिबंधो बत्तीस वस्साणि अंतोमहत्तूणाणि । सेसाणं कम्माणं दिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । वही पृ० २८९ । १. पढमसमयअवदो तिविहं कोहमुवसामेइ । सा चेव पोराणिया पढमट्टिदी हवदि (पृ २९०) । एदेण कमेंण जाधे आवलिय-पडिआवलियाओ सेसाओ कोधसंजलणस्स ताधे विदियट्टिदीदो पढमट्टिदीदो आगाल-पडिआगालाओ वोच्छिण्णो। पडिआवलियादो चेव उदीरणा कोहसंजलणस्स । वही १० २९१ । आगाल-पडिआगालवोच्छेदे तदो पहुडि कोहसंजलणस्स णत्थि गुणसे ढिणिक्खेवो। तदो पडिआवलिादो चेव पदेसग्गमोकड्डियूणासंखेज्जे समयपबद्धे उदीरेदि । जयध० पु० १३ प० २९२ । पडि आवलियाए एकम्हि समए सेसे कोहसंजलणस्स जहणिया ठिदिउदीरणा। वही पृ० २९२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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