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________________ पुरुषवेदसम्बन्धी कार्योंका निर्देश २१९ प्रबद्धके उपशम होनेको सूचित करनेके लिए कल्पित किया गया है। संदृष्टिमें उपान्त्य उपशमनावलिको बन्धावलि, अन्तिम उपशमनावलिको उपशमनावलि और उसके बादकी आवलिको उच्छिष्टावलि कहा गया है। अथ पुंवेदोपशमनकालचरमसमये स्थितिबन्धप्रमाणप्ररूपणार्थमिदमाह तच्चरिमे पुंबंधो सोलसवस्साणि संजलणगाण । तदुगाणि सेसाणं संखेज्जसहस्सवस्साणि' ।। २६३ ।। तच्चरमे पुंबंधः षोडशवर्षाणि संज्वलनकानाम् । तद्विकानि शेषाणां संख्यसहस्रवर्षाणि ॥ २६३ ॥ सं० टी०-तस्य पुंवेदोपशमनकालस्य सवेदानिवृत्तिकरणस्य चरमसमये षोडशवर्षमात्रः वेदस्थितिबन्धः । संज्वलनचतुष्टयस्य स्थितिबंधो द्वात्रिंशद्वर्षप्रमितः । घातिचतुष्टयस्य संख्यातसहस्रवर्षमात्र: स्थितिबन्धः । ततः संख्ययगुणो नामगोत्रयोः संख्यातसहस्रवर्षमात्रः स्थितिबन्धः । ततः साधिको वेदनीयस्य संख्यातसहस्रवर्षमात्रः स्थितिबन्धः ।। २६३ ॥ पुरुषवेदके उपशमनाकालके अन्तिम समयमें स्थितिबन्धका विधान स० चं-तिस पुरुषवेदका उपशमनकाल पर्यन्त सवेद अनिवृत्तिकरण है ताका अन्तसमयविष पुरुषवेदका सोलह वर्षमात्र संज्वलनचतुष्कका बत्तीस वर्षमात्र औरनिका संख्यात हजार वर्षमात्र तहाँ स्तोक तीन घातियानिका तातै संख्यातगुणा नामगोत्रका तातै साधिक वेदनीयका स्थितिबन्ध हो है ।। २६३ ।। अथ पुंवेदस्य प्रथमस्थितौ आवलिद्वयावशेषायां संभवत्क्रियान्तरप्रतिपादनार्थमिदमाह पुरिसस्स य पढमठिदी आवलिदोसुवरिदासु आगाला । पडिआगाला छिण्णा पडियावलियादुदीरणदा ।। २६४ ॥ पुरुषस्य च प्रथमस्थितिः आवलिद्वयोरुपरतयोरागालाः । प्रत्यागालाः छिन्नाः प्रत्यालिकात उदीरणता ॥ २६४ ॥ सं० टी०-पंवेदस्य प्रथमस्थितिः क्रमेण गलित्वा यदा द्वयावलिमात्रावशेषा भवति तदा आगालप्रत्यागालो व्युच्छिन्नी । आवलिद्वयावशेषप्रथमसमयात्प्रभति गुणधेणिनिजरापि व्युच्छिन्ना किन्तु तदैवोदयावलिबाह्योपरितनावलिद्रव्यस्योदयावल्यामुदीरणापि पूर्वोक्तलक्षणा प्रारब्धा ।। २६४ ।। प्रकृतमें अन्य कार्योंका निर्देश स० चं०-पुरुषवेदकी अन्तरायामके नीचैं कही थी जो प्रथमस्थिति तीहिंविषै दोय आवली अवशेष रहैं आगाल प्रत्यागालका व्युच्छेद भया । बहुरि दोय आवली अवशेष रहैं तहाँ १. तस्समए पुरिसवेदस्स ट्ठिदिबंधो सोलस वस्साणि । सेसाणं कम्माणं ट्ठिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । वही पृ० २८५ । २. पुरिसवेदस्स पढमट्रिदीए जाधे बे आवलियाओ सेसाओ ताधे आगाल-पडिआगालो वोच्छिण्णो । वही पृ० २८५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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