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________________ २१२ लब्धिसारं कि माया वेदकके कार्योंका उल्लेख करते हुए जो चूर्णिसूत्र आये हैं उनमें जहाँ मोहनीय कर्मको छोड़ कर शेष कर्मो का स्थितिबन्धके साथ स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघात स्वीकार किया है वहाँ माया संज्वलन और लोभ संज्वलनका मात्र स्थितिबन्ध तो स्वीकार किया है पर स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघात नहीं स्वीकार किया है। इस प्रकार उक्त तर्क और प्रमाणसे स्पष्ट ज्ञात होता है कि अन्तरकरण क्रिया सम्पन्न होनेके बाद मोहनीयकी किसी भी प्रकृतिका स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघात नहीं होता। जत्तो पाये होदि हु ठिदिबंधो संखवस्समेत्तं तु । तत्तो संखगुणूणं बंधोसरणं तु पयडीणं ॥ २५५ ।। यतःप्रायेण भवति हि स्थितिबन्धः संख्यवर्षमात्रःतु। ततः संख्यगुणोनं बन्धापसरणं तु प्रकृतीनाम् ।। २५५ ॥ सं०टी०-यतः कारणात्संख्यातसहस्रवर्षमात्रः स्थितिबन्धः प्रायेण भवति ततः कारणात् संख्यातगुणोन स्थितिबन्धापसरणं वध्यमानप्रकृतीनां भवतीति सूत्रोक्तत्वात् स्थितिबन्धः व १०००१ व० ००१ ब १ ० ० ०१ स्थितिबन्धाप- व १०००१४ व १०००१४ व १ ० ० ०१४ मरणप्रमाण ५ ५। ५ मोहनीयवानांणांनावरणादिशेषकर्मणांस्थितिबन्धः अन्तरकरणचरमसमयस्थितिबन्धादसंख्यातगुणहीनःपल्यासंख्यातबहभागमात्रस्यापसरणात् । तत्र तीसियानां स्थितिबन्धः पल्यासंख्यातकभागमात्रोऽपि सर्वतः स्तोकः अस्मादसंख्येयगणो वीसियानां स्थितिबन्धः प अस्मादर्धनाधिको वेदनीयस्य स्थितिबन्धः प ३ ॥ २५५ ।। १२ स. चं०-जातें इहां मोहका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षमात्र हो है तातें पूर्व स्थितिबन्धापसरण" इहां स्थिति बन्धापसरण संख्यातगुणा घटता सम्भवै है। बहुरि ज्ञानावरणादिकनिका स्थितिबन्ध अंतर करनेका अंत समयसम्बन्धी स्थितिबन्ध” असंख्यातगुणा घटता है जातें इनके स्थितिबंधापसरणका प्रमाण पल्यकौं असंख्यातका भाग दीएं बहुभागमात्र है। तहां तीसीयनिका स्थितिबंध पल्यका असंख्यातवां भागमात्र है। औरनितें स्तोक है । ता” असंख्यातगुणा वीसीयनिका है । तातै ड्योढ़ा वेदनीयका है ।। २५५ ॥ अथोपरि भविष्यत्स्थितिबन्धापसरणप्रमाणावधारणार्थमाह--- वस्साणं वत्तीसादुवरि अंतोमुहुत्तपरिमाणं । ठिदिबंधाणोसरणं अवरट्ठिदिबंधणं जाव' ।। २५६ ।। १. तस्समए पुरिसवेदस्स ठिदिबंधो सोलसवस्साणि । संजलणाणं ठिदिबंधो वत्तीसवस्साणि । सेसाणं पुण कम्माणं ठिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्माणि । वही पृ० २८९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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