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________________ १८६ लब्धिसार वर्गणाद्रव्यं भवति स । १२ - गु । इत्थं सर्वनिषेकसत्त्वानुभागावस्थितिर्ज्ञातव्या । अत्र ७। १२ प ख ३ अ गु २ व २२ तात्कालिकानुभागसत्त्वं ९ ना अनन्तेन खण्डयित्वा तद्बहुभागमात्रकाण्डकं ९ ना ख । पुनस्तदेकभागमनन्तेन खण्डयित्वा एकभागमात्रप्रतिस्थाप्य ९ ना बहुभागमात्रानुभागे ९ ना ख पूर्वखण्डितानुभागकर्मपरमाणुद्रव्यं निक्षि ख ख ख ख पति, अवशिष्टानुभागरूपेण तद्रव्यं परिणमयतीत्यर्थः । अपूर्वकरणप्रथमसमये आयुर्वजितकर्मणां स्थितिसत्त्वं स्थितिबन्धश्च अन्तःकोटीकोटिसागरोपमप्रमित एव सा अं को २ । स्थितिबन्धात् स्थितिसत्त्वं संख्यातगुणं सा अं को २ अयमेव विशेषः ॥ २२३ ॥ अनुभागकाण्डक आदिके प्रमाणका निर्देश सं० चं०-अशुभ प्रकृतिनिका जो पूर्व अनुभाग था ताकौं अनंतका भाग दीएं तहां एक अनुभाग कांडकविणे बहुभागमात्र अनुभागका खंडन हो है, एक भागमात्र अवशेष रहै है। विशुद्धताकरि शुभ प्रकृतिनिका अनुभाग खंडन न हो है ऐसा जानना। इहां प्रथमादि निषेकनिका अनुभाग दिखाइए है तहां द्रव्य स्थिति गुणहानि नाना गुणहानि दोगुणहानि अन्योन्याभ्यस्तका प्रमाण पहले जानना । सो इनिका कर्मनिकी स्थिति अपेक्षा तौ गोम्मटसारका योगमार्गणा अधिकारविषै वा कर्मस्थिति रचना अधिकारविषै वर्णन कीया है सो जानना । अर अनुभाग अपेक्षा तिन सब द्रव्यादिकनिका प्रत्येक प्रमाण यथायोग्य अनंत है। सो आयु विना सात कर्मनिविष विवक्षित कर्मके परमाणूका प्रमाणरूप जो द्रव्य ताकौं स्थिति संबंधी साधिक ड्योढ गुणहानिका भाग दीएं प्रथम गुणहानिका प्रथम निषेकका प्रमाण आवै है। याकौं अनुभागसंबंधी साधिक ड्योढ गुणहानिका भाग दीएं प्रथम निषेकनिविर्षे प्रथम गुणहानिका जो प्रथम स्पर्धक ताको प्रथम वर्गणाके परमाणनिका प्रमाण आवै है। सबसे थोरे जिस परमाणूविषै अनुभागके अविभाग प्रतिच्छेद पाइए ताका नाम जघन्य वर्ग है सो ऐसे जेती परमाणु होइ तिनके समूहका नाम वर्गणा है। बहुरि यातें द्वितीयादि वर्गणानिविषै एक एक चय घटता क्रमकरि परमाणूनिका प्रमाण है। बहुरि द्वितीयादि गुणहानिनिविर्षे पूर्व गुणहानि सम्बन्धी वर्गणातै आधा आधा क्रम लीए वर्गणाद्रव्यका प्रमाण हैं। ऐसें प्रथम गुणहानिका प्रथम वर्गणा द्रव्यकौं अनुभाग सम्बन्धी अन्योन्याभ्यस्त राशितै आधा प्रमाणका भाग दीए अन्त गुणहानिकी प्रथम वर्गणाका द्रव्य हो है। यामैं क्रमते एक एक चय घटनेतै एक घाटि गुणहानिमात्र चय घटै अन्त गुणहानिकी अन्त वर्गणाका द्रव्य हो है। इहां ऐसा जानना--- प्रथम गुणहानिकी प्रथम वर्गणातै लगाय यावत् वर्गनिविषै एक एक अविभाग प्रतिच्छेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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