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________________ देशसंयम में कुछ विशेष सूचनायें १५७ इसलिये चूर्णिसूत्र में मनुष्यके जघन्य प्रतिपातस्थानका निर्देश करते हुए ओघ कर उसीको दुहराया है । इतना यहाँ स्पष्टीकरणके रूपमें विशेष जानना चाहिये कि जहाँ तिर्यञ्चोंके बाद मनुष्योंके प्रतिपातस्थान समाप्त होते हैं वहाँसे लेकर मनुष्योंके जघन्य प्रतिपद्यमान स्थानोंके प्राप्त होनेके मध्य असंख्यात लोकप्रमाण अन्तर जानना चाहिए । इसी प्रकार मनुष्योंके उत्कृष्ट प्रतिपद्यमानस्थान और उन्होंके जघन्य अप्रतिपद्यमान - अप्रतिपतमान स्थानके मध्य असंख्यात लोकप्रमाण अन्तर जानना चाहिए। अन्तरका अर्थ है कि यहाँ जो अन्तर कहा है वह संयमासंयमलब्धिसे रहित है । प्रतिपातस्थान संयमासंयमसे गिरनेके अन्तिम समयमें होते हैं । प्रतिपद्यमानस्थान संयमासंयमको प्राप्त करनेके प्रथम समय में प्राप्त होते हैं तथा अप्रतिपद्यमान - अप्रतिपतमान स्थान उक्त दोनों प्रकारके स्थानोंके मध्य संयमासंयममें अवस्थित रहते हुए रहते हैं । वैसे सब विशेषताओंका निर्देश संस्कृत और हिन्दी टीका में किया ही है। स्पष्टीकरणको दृष्टिसे कुछ विशेषताओंका निर्देश यहाँ किया है । अन्तमें संयमासंयमलब्धिको समाप्त करते हुए चूर्णिसूत्रोंके अनुसार जयधवलामें जिन तथ्यों का निर्देश किया गया है उनकी यहाँ मीमांसा कर लेना आवश्यक है । यथा - १. संयतासंयत जीव अप्रत्याख्यानकषायको नहीं वेदता, क्योंकि उसके अप्रत्याख्यानकषायकी उदयशक्तिका अत्यन्त परिक्षय होता है । इससे संयमासंयमलब्धि औदयिक नहीं है यह सिद्ध होता है । २. प्रत्याख्यानावरणीय कषायका उदय होते हुए भी वे संयमासंयमको आवृत नहीं करते । उनका उदय संयमासंयमका कुछ भी उपघात नहीं करता यह इसका तात्पर्य है, क्योंकि वे सकलसंयम के प्रतिबन्धक होनेसे देशसं यममें उनका व्यापार नहीं स्वीकार किया गया है । ३. शेष चार संज्वलन और नौ नोकषाय उदीर्ण होकर वे देशसंयमको देशघाति करते हैं । इसलिए देशसंयमको क्षायोपशमिक स्वीकार किया गया है, क्योंकि वे संयमासंयमको देशघाति करते हैं इसका अर्थ है कि वे संयमासंयमको क्षायोपशमिक करते हैं । उनके उदयको देशघाति नहीं माना जाय तो संयमासंयमकी उत्पत्तिका विरोध हो जायगा । इसलिए चार संज्वलन और नौ नोकषायों के सर्वघाति स्पर्धकोंका उदयाभावी क्षय होनेसे और उन्होंके देशघाति स्पर्धकोंका उदय होनेसे संयमासंयम क्षायोपशमिक स्वीकार किया गया है । ४. संयमासंयम जीव अप्रत्याख्यानावरणका तो वेदन करता नहीं । प्रत्याख्यानावरणका वेदन करता हुआ भी वह संयमासंयमका न तो उपघात ही करता है और न अनुग्रह ही करता है । इसलिए प्रत्याख्यानावरणका वेदन करता हुआ भी वह यदि चार संज्वलन और नौ नोकषायका वेदन न क तो संयमासंयमfor क्षायिक हो जायगी । अर्थात् जैसे क्षायिकलब्धि एक प्रकारकी होती है वैसे संयमासंयमfor भी एक प्रकारकी हो जायगी। पर ऐसा सम्भव नहीं है, इसलिए वहाँ चार संज्वलन और नौ नोकषायोंका उदय देशघाति होता है, अतः संयमासंयमलब्धि क्षायोपशमिक होती है ऐसा स्वीकार किया गया है । और क्षयोपशमके असंख्यात लोकप्रमाण भेद हैं, इसलिए संयमासंयमfor भी असंख्यात लोकप्रमाण स्वीकार की गई है। इसप्रकार देशसंयमलब्धि समाप्त हुई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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