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________________ सम्यक्त्वके असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदरणा देयं-स । १२ - प प शेषकभागद्रव्यमुदयावल्यां देयं स ३ । १२ - a पल्यभागaa ७ । ख । १७ । गु ओ प प ७ । ख । १७ । गु । ओ प । प aa aa हारभूतासंख्यातस्य बाहुल्येन पल्यद ये अपकर्षणभागहारे वा अपवर्तितेप्यसंख्यातगुणकारसंभवात, इतः परं सर्वत्र पल्यासंख्यातभागखंडितमेव उदयावल्यां दीयते । ततो मिथ्यात्वप्रकृतेः पल्यासंख्यातबहुभागमात्रायामेषु बहुषु गतेष स्थितिकांडकेषु चरमकांडकचरमफालिपतनसमये मिथ्यात्वस्य उच्छिष्टावलिमात्रा निषेका अवशिष्यते । अन्यत्कांडकद्रव्यं सर्व सम्यग्मिथ्यात्वसम्यक्त्वप्रकृतिरूपेण परिणतमित्यर्थः । आवलिमात्र निष्काश्च समयं प्रति द्विसमयोना गलंति ॥ १२१-१२२॥ स. चं०-तिस दूरापकृष्टि नामा स्थितिसत्वका प्रमाण पल्यके संख्यातवे भागमात्र जानना। तातै परै पल्यकौं असंख्यातका भाग दीए तहां बहभागमात्र आयाम धरै असे संख्यात हजार स्थितिकांडक भए सम्यक्त्वमोहनीका द्रव्यकौं अपकर्षण कीया तिसविर्षे असंख्यात समयप्रबद्धमात्र उदोरणा द्रव्यकौं उदयावलीविर्षे दीजिए है । सोई कहिए है सम्यक्त्वमोहनीका द्रव्यकौं अपकर्षण भागहारका भाग देइ तहां बहुभाग तो जैसे थे तैसैं ही रहैं अवशेष एक भागकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभाग उपरितन स्थितिविर्षे देना । अवशेष एक भागकों बहुरि पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहांबहुभाग गुणश्रेणिआयामविष देना अर एक भाग उदयावलीविर्षे देना । सो इहां उदयावलीविर्षे दीया द्रव्यकौं उदीरणा द्रव्य जानना सो पूर्वै तौ उदयावलोविर्षे द्रव्य देनेके अर्थि असंख्यात लोकका भाग देनेतें द्रव्यका प्रमाण स्तोक आवै था, इहांत लगाय परै सर्वत्र पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देना सो भागहार घटता होनेतें द्रव्यका प्रमाण एक भागवि भी असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण आवै है असा जानना। बहुरि तातै मिथ्यात्व प्रकृतिके पल्यकौं असंख्यातका भाग दीए तहां बहुभागमात्र आयाम धर असे बहत स्थितिखंड भए इस मिथ्यात्व प्रकृतिके अन्त काडकका अन्त फालिपतनका समयविर्षे मिथ्यात्वके उच्छिष्टावलीमात्र निषेक अवशेष रहैं हैं। अन्य सर्व मिथ्यात्वप्रकृतिका द्रव्य है सो मिश्रमोहनी वा सम्यक्त्वमोहनीरूप परिणमै है। जे आवलीमात्र निषेक रहैं है ते समय समय प्रति एक एक निषेकरूप होइ यावत् दो समय अवशेष रहैं तावत् क्रमतें निर्जरै हैं ॥ १२१-१२२॥ विशेष-दूरापकृष्टिसे नीचे असंख्यात गुणहानिर्भित संख्यात हजार स्थितिकाण्डकघात होनेपर भी जब तक मिथ्यात्वका अन्तिम स्थितिकाण्डक प्राप्त नहीं होता, इस अन्तरालमें सम्यक्त्वके असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा प्रारम्भ हो जाती है । यहाँसे पूर्व सर्वत्र असंख्यात लोकप्रमाण प्रतिभागके अनुसार उदययोग्य सब कर्मोंकी उदीरणा होती रही। परन्तु यहाँसे पल्योपमके असंख्यातों भागप्रमाण प्रतिभागके अनुसार सम्यक्त्वको उदीरणा प्रवृत्त हुई यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अपकर्षित होनेवाले सकल द्रव्यमें पल्योपमके असंख्यातने भागका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतने द्रव्यको उदयावलिके बाहर गुणश्रेणिमें निक्षिप्त करता है तथा गुणश्रेणिके भी असंख्यातने भागमात्र द्रव्यकी, जो कि असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण होता है, समय समयमें उदीरणा करता है । पुनः इसके आगे हजारों स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर मिथ्यात्वकी उच्छि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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