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________________ गुणश्रेणिसम्बन्धी विशेषताएं निष्काः २ २ ० उभयोप्यंतरायामः २ २१ सोऽप्यंतर्मुहूर्तमात्र एव । शीर्षस्याधो गलितावशेषगुणश्रेण्यायामः अनिवृत्तिकरणकालसंख्याकभागमात्रः । सोऽपि शीर्षात्संख्ययगुणः २ २३। तत्रांतरायामे स्थितान्निषेकानु कोर्य प्रतिसमयमसंख्येयगुणाः फालीगृहीत्वा तत्कालबध्यमाने मिथ्यात्वप्रकृतिसमयप्रबद्ध अंतरायामस्याबाधावजिताधःस्थितिए उपरितनस्थितिपच निक्षिपति, अंतरायामसदशस्थितिषु न निक्षिपतीत्यर्थः । अनादिमिथ्यादृष्टिमिथ्यात्वप्रकृतेरेवातरं करोति । सादिमिथ्यादृष्टिस्तस्था मिश्रसम्यक्त्वप्रकृत्यारन्तरं करोति। तयोन्तरोत्कीर्णद्रव्यमपि तत्कालबध्यमानमिथ्यात्वप्रकृतेरध उपरि च निक्षिपति । अनिवृत्तिकरणसंख्यातकभागमात्रस्य शेषस्य संख्यातकभागमात्रांतरकरणककाल: २१३ उपरि तद्बहभागमात्रो प्रथम स्थितिः २२।३।३ तदुपर्यतर्म४।४ ४। ४। ४ हूर्तमात्रोऽतरायामः २ १२॥ ८६ ।। अब आगे अन्तरायामका प्रमाण और उसमें निषेक रचनाविधिको बतलाते हैं स० च०--गुणधेणि-आयामवि अपूर्व-अनिवृत्तिकरण” जो अधिक प्रमाण अनिवृत्तिकरणका संख्यातवां भागमात्र कह्या था ताका नाम इहां गुणश्रेणिशीर्ष है। सो गुणश्रेणिशोषके सर्व निषेक अर यात संख्यातगुणा गणश्रेणिशीर्षके उपरिवर्ती असे उपरितन स्थितिके सर्व निषेक इनि दोऊनिकौं मिलाएं अंतरायाम हो है। एते निषेकनिका अभाव करिए है सो भी अंतर्मुहूर्तमात्र है । इहां शोर्ष के नीचें अनिवृत्तिकरणका अवशेष कालमात्र गलितावशेष गुणश्रेणि-आयाम अनिवृत्तिकरणकालके संख्यातवें भागप्रमाण है सो भी शीर्ष” संख्यातगुणा जानना। तहां अंतरायामविर्षे उते जे निषेक तिनिके द्रव्यके समय-समय अनंतगणा क्रम लीएं जे फालि तिनिकौं ग्रहण करि तिस समय बंधता जो मिथ्यात्व कर्म ताको स्थितिका आबाधाकाल छोडि अंतरायाम समान निषेकनिके नीचे वा ऊपरि जे निषेक तिनिविर्षे निक्षेपण करै है। अंतरायाम समान कालसम्बन्धी जे निषेक तिनविर्षे नाहीं निक्षेपण करै है। तहां अनादि मिथ्यादृष्टि जीव तौ मिथ्यात्व ही का अर सादि मिथ्यादृष्टी तीनों दर्शनमोहका अंतर करै है। बहुरि अंतरकरण करनेके कालका प्रथम समयतें लगाय जो अनिवृत्तिकरणकालका संख्यातवां भागमात्र काल अवशेष रह्या ताकौं संख्यातका भाग दीएं तहां एक भागमात्र तौ अंतरकरणकाल है अर ताके ऊपरि अवशेष बहुभागमात्र प्रथमस्थितिका काल है । बहुरि ताके ऊपरि जिनि निषेकनिका अभाव कीया सो अंतर्मुहूर्तमात्र अंतरायाम है ॥८६॥ विशेष-यहाँ जितने समयके निषेकोंका अभाव किया जाता है उनको अन्तरायाम संज्ञा है, एक तो यह बात बतलाई गई है और दूसरे अन्तर करते समय उसमें रहनेवाले निषेकोंका अन्तरायामसे नीचेके और ऊपरके किन निषेकोंमें निक्षेप होता है दूसरी यह बात बतलाई गई है। पहले गुणश्रेणिका काल अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालसे कुछ अधिक बतला आये हैं, वह अधिक काल ही गणथेणिशीर्ष कहलाता है। गुणश्रेणिशीर्ष सम्बन्धी स्थितिका काल और उससे संख्यातगणी स्थितिका काल इन दोनोंको मिलाकर जितना काल होता है तत्प्रमाण अन्तरायामका प्रमाण है जो अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होता है। प्रकृतमें इस अन्तरायाममें रहनेवाले निषकोंका अभाव किया जाता है, इसलिए इसकी अन्तरायाम संज्ञा है। अब उस अन्तरायामसम्बन्धी निषेकोंका अभाव कर मिथ्यात्वकी किस स्थितिमें निक्षेप करता है इस तथ्यका निर्देश करते हुए प्रकृत गाथामें समुच्चयरूपसे मात्र इतना ही कहा गया है कि नीचे और ऊपर आबाधाको छोड़कर बन्धमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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