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________________ उत्कर्षण विचार बहुरि ताकेँ नीचे नीचेके निषेकनिके क्रमतें एक समय घाटि, दोय समय घाटि आदि स्थिति व्यक्तिस्थिति है । बहुरि प्रथमादि निषेकनिकैं सर्वं ही स्थिति शक्तिस्थिति है । सो उत्कर्षण कीया द्रव्यकौं शक्तिस्थिति होइ तहां पर्यंत ही दीजिए है । बहुरि पूर्वे निक्षेप अतिस्थापन कह्या ताका अंक संदृष्टिरि स्वरूप दिखाए है जैसें पूर्वे समयबद्ध हजार समयकी स्थिति लीएं बंध्या तामें सोलह समय व्यतीत भएं अन्त निषेकका द्रव्यकों अपकर्षण करि आबाधाके ऊपरि तिस स्थिति के जे निषेक थे तिनविष सतरह निषेक अन्त छोडि अन्य सर्व निषेकनिविषै द्रव्य दीया । बहुरि ताके अनंतर समयविषै जो तिस अंत निषेकका द्रव्य जो उत्कर्षण करनेका समय लगाय सतरह्वाँ समयविषै उदय आवने योग्य असा द्वितीयावलीका प्रथम निषेक तिसविषै दीया था ताका उत्कर्षण कीया तब तीहि समयविषै हजार समयप्रबद्धप्रमाण स्थितिबंध भया ताकी पचास समय प्रमाण तो आबाधा है अर नवसे पचास निषेक हैं तिनि निषेकनिविषै अंतके सतरह निषेक छोडि अन्य सर्व निषेकनिविषै तिस उत्कर्षण कीया द्रव्यको निक्ष ेपण करिए है । असें इहां वर्तमान समयतें लगाय जाका उत्कर्षण ४९ या सो तौ सतरहवां समयविषै उदय आवने योग्य था अर जिस बंध्या समयप्रबद्धका प्रथम निषेकविषै दीया सो इकावनवां समयविषै उदय आवने योग्य भया सो इनिके बीचि अंतराल तेतीस समय भया सोई अतिस्थापन जानना । बहुरि हजार समयकी स्थितिविषै पचास समय आबाधाके सतरह निषेक अंत घटाएँ अवशेष नवसै तेतीस निषेकनिविषै द्रव्य दीया सो यहु उत्कृष्ट निक्ष ेप जानना । विशेष – पहले ६१वीं गाथाके आशयको स्पष्ट करते हुए व्याघातविषयक जघन्य अतिस्थापना और जघन्य निक्षेपका स्पष्टीकरण कर आये हैं । उसके आगे नवीन बन्धके आश्रयसे एक आवलि कालप्रमाण अतिस्थापनाके प्राप्त होने तक एक-एक समय के क्रमसे अतिस्थापना में वृद्धि होती जाती है, निक्षेपका प्रमाण पूर्वोक्त ही रहता है । इसका विशेष स्पष्टीकरण जयधवला भाग ८ पृ० २५० से २६१ तक के पृष्ठोंमें किया गया है । यहाँ पं० श्री टोडरमलजीने नवीन बन्धको पूर्ववत् रखकर तथा पूर्व सत्त्व के अन्त निषेकसे उत्तरोत्तर नीचेके निषेकोंका आलम्बन कर इस विषयको स्पष्ट किया है । जयधवलाके अनुसार प्रकृत विषयका सोदाहरण स्पष्टीकरण इस प्रकार है ५९ समय के स्थितिप्रमाण नवीन बन्धमें प्राक्तन सत्ता में स्थित ५० वीं अग्र स्थितिका उत्कर्षण होनेपर ५१ से ५५ तक की नवीन बन्धसम्बन्धी स्थितियाँ अतिस्थापनारूप रहती हैं तथा ५६ से ५९ तककी स्थितियों में प्राक्तन सत्ता में स्थित स्थितिका निक्षेप होता है । इस प्रकार उत्तरोत्तर नवीन बन्धकी स्थितिमें एक-एक समयकी वृद्धि होनेपर एक आवलि काल के प्राप्त होने तक अतिस्थापना बढ़ती जाती है, निक्षेपका प्रमाण पूर्ववत् ही रहता है । उदाहरणार्थं नवीन स्थितिबन्ध ७० समय प्रमाण होनेपर ५१ से ६६ समय तककी स्थितियाँ अतिस्थापनारूप रहती हैं तथा ६७ ७० समय तककी स्थितियोंमें प्राक्तन सत्तारूप ५० वीं अग्र स्थितिका निक्षेप होता है । यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि जब तक एक समय कम एक आवलिकालके प्राप्त होने तक अतिस्थापना और आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निक्षेप रहता है तब तक उनकी व्याघातविषयक अतिस्थापना और निक्षेप संज्ञा है । इसके आगे एक आवलिप्रमाण अतिस्थापनाके होनेपर वे अव्याघात विषयक अतिस्थापना और निक्षेप संज्ञाको प्राप्त होते हैं। ये अव्याघात ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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