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________________ ४८ लब्धिसार बंध्या समयप्रबद्धका अठतीसवां निषेक जिस समयविर्षे उदय होगा तिस समयविषै उदय आवने योग्य जो पूर्व सत्ताका निषेक ताका द्रव्यकों उत्कर्षण करतें हाल बंध्या समयप्रबद्धका गुणतालीसवां आदि सोलह निषेकनिकौं अतिस्थापनरूप राखै है सो यहु उत्कृष्ट अतिस्थापन है। इहां पर्यंत पचावनवां आदि च्यारि निषेकनिवि निक्षेपण जानना। बहुरि आवलोमात्र अतिस्थापन भए पीछे ताके नीचे नीचेके निषेकनिका उत्कर्षण करते अतिस्थापन तौ आवलीमात्र ही रहै है अर निक्षेप क्रमतें एक एक निषेककरि बधता हो है । अंक संदष्टिकरि जैसे हाल बंध्या समयप्रबद्धका सैतीसवां निषेक जिस समयविर्षे उदय होगा तिस समयवि उदय आवने योग्य सत्ताके निषेककौं उत्कर्षण होते अठतीसवां आदि सोलह निषेक अतिस्थापनरूप हो हैं । चौवनवां आदि पांच निषेक निक्षेपरूप हो हैं । बहुरि ताके नीचेके निषेकका उत्कर्षण होतें सैंतीसवां आदि सोलह निषेक अतिस्थापनरूप हो हैं तरेपनवां आदि छह निषेक निक्ष परूप हो हैं। औसैं अतिस्थापन तितना ही अर निक्षेप क्रमतें बधता जानना। अर उत्कृष्ट निक्षेप कहां होइ ? सो कहिए है कोई जीव पहिलै उत्कृष्ट स्थिति बांधि पीछ ताकी आबाधाविष एक आवली गमाइ ताके अनंतरि तिस समयप्रबद्धका जो अंतका निषेक था ताका अपकर्षण कोया तहां ताके द्रव्यकौं अंतके एक समय अधिक आवलीमात्र निषेकनिविर्षे तौ न दीया अवशेष वर्तमान समयवि उदय योग्य निषेकतै लगाय सर्व निषेकनिविर्षे दीया असे पहिले अपकर्षण क्रिया करी । बहुरि ताके उपरिवर्ती अनंतर समयविष पूर्वै अपकर्षण क्रिया करतें जो द्रव्य उदयावलीका प्रथम निकवि दीया था ताका उत्कर्षण कीया तब ताके द्रव्यकौं तिस उत्कर्षण करनेका समर्यावर्षे बंध्या जो उत्कृष्ट स्थिति लीए समयप्रबद्ध ताके आबाधाकौं उल्लंघि पाइए है जे प्रथमादि निषेक तिनिविर्षे अंतके समय अधिक आवलीमात्र निषेक छोडि अन्य सर्व निषेकनिविर्षे निक्षेपण करिए है । इहाँ एक समय अधिक आवलीकरि हीन जो आबाधाकाल तीहि प्रमाण ती अतिस्थापन जानना । काहेतं ? सो कहिए है जिस द्वितीयावलोका प्रथम निषेकका उत्कर्षण कीया सो तौ वर्तमान समयतें लगाइ एक एक समय अधिक आवलीकाल भए उदय आवने योग्य है। अर जिनि निषेकनिवि निक्षेपण कीया ते वर्तमान समयतें लगाय बंधी स्थितिका आबाधा काल भए उदय आवने योग्य हैं सो इनि दोऊनिके बीचि एक समय अधिक आवली करि हीन आबाधाकालमात्र अंतराल भया। द्वितीयावलिके प्रथम निषेकका द्रव्यकौं बीचिमैं इतने निषेक उल्लंघि ऊपरिके निषेकनिविर्षे दीया सोई इहां अतिस्थापनका प्रमाण जानना । बहुरि इहां एक समय अधिक आवलीकरि युक्त जो आबाधाकाल तीहिं करि हीन जो उत्कृष्ट कर्मस्थिति तीहि प्रमाण उत्कृष्ट निक्षेप जानना। काहेत ? सो कहिए है एक समय अधिक आवलीमात्र तौ अंतके निषेकनिविर्षे न दीया अर आबाधाकाल विर्षे निषेक रचना है ही नाहीं तातै उत्कृष्ट स्थितिविष इतना घटाया । इहां इतना जानना-अपकर्षण द्रव्यका नीचले निषेकनिवि निक्ष पण कीया ताका जो उत्कर्षण होइ तौ जेती बाकी शक्तिस्थिति होइ तहां पर्यंत ही उत्कर्षण होइ ऊपरि न होइ। शक्तिस्थिति कहा ? सो कहिए है विवक्षित समयप्रबद्धका जो अंतका निषेक ताकी तौ सर्व ही स्थिति व्यक्तिस्थिति है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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