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________________ २२ लब्धिसार अंतर्मुहूर्त कालानि त्रीण्यपि करणानि भवंति प्रत्येकम् । उपरित: गुणितक्रमाणि क्रमेण संख्यातरूपेण ॥ ३४ ॥ सं० टी — एते त्रयोऽपि करणपरिणामाः प्रत्येकमंतर्मुहूर्तकाला भवंति । तथापि उपरितः अनिवृत्तिकरणकालात्क्रमेणापूर्वकरणाधः प्रवृत्तकरणकालो संख्येयरूपेण गुणितक्रमो भवतः । तत्र सर्वतः स्तोकांत मुहूर्तः अनवृत्तिकरणकाल: २२ ततः संख्येयगुणः अपूर्वकरणकाल: २२२ ततः संख्येयगुणः अधः प्रवृत्तकरणकालः २२२२ । अथाधः प्रवृत्तकरणस्वरूपं निरुक्तिपूर्वकं व्याचष्टे- सं० चं० - तीनों ही करण प्रत्येक अंतर्मुहूर्त कालमात्र स्थितियुक्त हैं तथापि ऊपरतें संख्यातगुणा क्रम लीएं हैं । अनिवृत्तिकरणका काल स्तोक है । तातें अपूर्वकरणका संख्यातगुणा है । तातें अधःप्रवृत्तकरणका संख्यातगुणा है || ३४ || विशेष - कषायप्राभृत चूर्णिसूत्र में तीनों करणोंके साथ चौथी उपशामनाद्धाको पृथक् से परिगणित किया है । इस द्वारा उपशम सम्यग्दर्शनका काल लिया गया है। अब अधःप्रवृत्तकरणका स्वरूप कहते हैं जम्हा डिमभावा उवरिमभावेहिं सरिसगा होंति । तम्हा पढमं करणं अधापवत्तो त्ति णिहि ।। ३५ ।। यस्मादधस्तनभावा उपरितनभावैः सदृशा भवंति । तस्मात् प्रथमं करणं अधःप्रवृत्तमिति निर्दिष्टम् ।। ३५ ।। सं० टी० -- यस्मात्कारणादधस्तनसमयवर्तिजीवविशुद्धिपरिणामाः उपरितनसमयवतजीवविशुद्धिपरिणामः संख्यया विशुद्धया च सदृशा भवंति तस्मात्कारणात्प्रथमः करणपरिणामः अधःप्रवृत्त इत्यन्वर्थतो निर्दिष्टः । तथाहि तत्काले प्रथमसमयद्वितीयपुंजस्य परिणाम संख्याविशुद्धी द्वितीयसमयप्रथमपुञ्जस्य परिणामसंख्याविशु सदृशे । तथा प्रथमद्वितीयतृतीयसमयेषु तृतीयद्वितीयप्रथमपुंजानां परिणामसंख्याविशुद्धी अन्योन्यं सदृशे । एवमधस्तनोपरितनसमयपरिणामपुंजसंख्या विशुद्धिसादृश्यं नेतव्यं यावच्चरसमयचरमपुंजे परिणामाः अप्राप्ताः, प्रथमसमय प्रथमपुंजस्य चरमसमयचरमपुंजस्य च संख्याविशुद्धिसादृश्याभावात् ।। ३५ ।। अथापूर्वानिवृत्तिकरणयोः स्वरूपं निरूपयति सं० चं० - जाते इहां नीचले समयवर्ती कोई जीवके परिणाम ऊपरले समयवर्ती कोई जीवके परिणामनिके सदृश हो हैं, तातें याका नाम अधःप्रवृत्तकरण है । भावार्थ - करणनिका नाम नानाta अपेक्षा है सो अधःकरण मांडै कोई जीवकौं स्तोक काल भया कोई जीवकों बहुत काल भया तिनके परिणाम इस करणविषै संख्या वा विशुद्धताकर समान भी हो हैं असा जानना ।। ३५ ।। Jain Education International विशेष - प्रथम समयसम्बन्धी प्रथम पुंजके परिणाम और अन्तिम समयसम्बन्धी अन्तिम पुंजके परिणाम ये किन्हीं परिणामों के सदृश नहीं होते । अन्य जितने परिणाम हैं वे यथायोग्य सदृश भी होते हैं और विसदृश भी होते हैं । पूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणका स्वरूप कहते हैं १. उवरिमपरिणामा अध हेट्ठा हेट्ठिमपरिणामेसु पवत्तंति त्ति अधापवत्तसण्णा । घ० पु० ६, पृ० २१७ । जयध० पु० १२, पृ० २३३ । गो० जी० गा० ४८ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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