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जुगाइजिणिद-चरियं चिता-सोय-सागरमणुपविट्ठा चिट्ठइ । केवइ-कालाओ समागओ लोद्धओ। दिट्ठा सचिंता घरिणी। पुच्छिया-"पिए ! सचिंता विय लक्खियसि ?" तीए भणियं-"आमं। तेण भणियं--"अओ चेव दुब्बला। जओ
वारिय-वामा सच्छंद-गामिणी अन्नमन्नमणुरत्ता । नारि व्व चलसहावा चिता जीवं कयत्थेइ ॥४४५।। चिता दहइ सरीरं दहइ अणाहत्तणं परविएसे। दहइ य अब्भक्खाणं दहइ अकज्जं कयं पच्छा ॥४४६॥ अग्गीए विणा दाहो ऊसाससमन्नियं इमं मरणं । रज्जूए विणा बंधो चिता दुक्खाण रिछोली ॥४४७।। चिता-साइणि जहि वसइ तं ददु अंगुन ठाइ। धीरा धीरि म जइ करहिं तो अभिंतरि खाइ ॥४४८॥
ता परिहरियव्वा खु एसा पावा । तीए भणियं-"नाह ! एस संखेवत्थो--अत्थोवज्जणं काऊण घरं वा चितेसु मम वा विसज्जेसु।” समागय-चित्तेण जंपियं वाहेण-"पिए ! पमुइय-माणसा चिट्ठसु । संपाडेमि ते समीहियं" ति करे काऊण सरासणं निग्गओ घराओ। पत्तो पव्वय-नियंब-संठियं महाडवि । दिटठो तेण सत्तंग-पइट्रिओ सव्वंग-लक्खण-धरो समन्नय-कूभत्थलो सल्लइ-वणं पइ पत्थिओ गयवरो। तओ अलक्खिओ चेव मह-महीरुह-सिहरमारूढो वणयरो। लक्खं पत्तस्स आयनमायढिऊण धणुवरं मुक्को बाणो । विद्धो मम्म-ठाणे करी । इओ य कयंत-पासायढिओ ताल-सरल-कालकाओ सोयामणी-सोणचवल-जीहा-जुयलेण दुज्जणो ब्व जणिय-जण-भओ, पव्वय-नियंबाए वेणी-दंडो व्व महि-महिलाए, आहारत्थी निग्गओ पव्वय-विवराओ महा-भुयंगमो । मुच्छा-विहलंघलेण चंपिओ पुच्छ-पएसे पडतेण करिणा।रोसवसओ चिरं .. परियंचिऊण विहिय-फणा-मंडवो करि-काय-हेटुओ कुंडलं काऊण ठिओ भुयंगमो। वाहेण वि समारूढ-गणं ससरं पक्खित्तं धरणीए धणुवरं । सयमवि सणियं सणियमुत्तिण्णो तरुवराओ दरमयस्स गयस्स कुंभत्थलाओ आहरामि मोत्ताहलाई२ ति चिंतिऊण दाहिणकरकयासिधेणुओ करि-कर-विणिविट्ठ-दिट्ठी सविहमागओ। रोसारुणलोयणेण कुविय-कयंतेणेव दट्ठो दाहिण-पाए भुयंगेण । खणंतरेण मुक्का तिण्णि वि जीविएण । एत्थंतरे कयंत-कडक्खिओ पत्तो तमुद्देसमेगो कोल्हुओ। विकरणे करि-वणयर-भुयंगमे चितिउमारद्धो--"अहो मे पुण्णपरिणई ! अहो मे अणुकुलो विही । ता संपत्त-विहवेण वि पुरिसेण उच्छेयं परिहरंतेण रिद्धी भोत्तव्वा । अओ अज्जत्तण-दिणं कोयंड-कोडि-पइदिय-गुणण्हारुणा एग दिणं गमेयव्वं । एगेण यसरण्हारुणा। तओ कइवय-दिणाणि, पुरिस-सप्प-सरीरेहि, पच्छा छम्मासे जाव करिकडेवरं भविस्सइ । एवं वियप्पिऊण पारद्धो धणु-कोडि-पइट्ठियं ण्हारुमाहारेउ। तुट्टगुण-कोयंडेण तालु-पविद्धो तइय-चउत्थओ जाओ। लोद्धेण वियप्पियं"कुंभि-कुंभत्यलाओ मोत्ताहलाणि घेत्तूण अदिट्ठ-विओगं घरं ठिओ घरिणीए सह विसयसुहमणुभविस्सं । गय-मणो-गयं पुण सरस-सल्लइ वणं चरेऊण करिणीहि समं पउम-सरेसु विविह-विलासेहि विहरिस्सं । सप्प-संकप्पियं च दद्द राईहिं पाणवित्ति विहेऊण सह-सीयल-वालुया-कण-मणोहरे गिरिनइया-पुलिणे रमइस्सं, कोल्हुएण अमुणिय-विहि-विलसिएण पम्हुट्ठ-मच्चुणा सासयमिव अत्ताणयं मन्नमाणेण दीह-कालं वित्ती संकप्पिया। कयंतेण य चिंतियं इमे चउरो वि संहरिस्सामि । तहेव संहरिया भणियं च
अण्णह परिचितिज्जइ सहरिसकंडुज्जुएण हियएण। परिणमइ अण्णह च्चिय कज्जारंभो विहिवसेण ॥४४९।। अण्णं वाहस्स मणे अन्नं करिणो तहाहिणो अण्णं । कोल्हुय-चित्ते अण्णं कुविय-कयंतस्स पुणो अण्णं ।।४५०।। अण्णं चितेइ नरो अप्पाणं सासयं च मन्नंतो । पडिऊण अंतराले कुविय-कयंतो कुणइ अण्णं ॥४५१॥ खणमूसव-खणवसणावयाइं खण-दि-नट्र-पेम्माइं। पवणाहय-धयवड-सन्निहाई विहिणो विलसियाइं ॥४५२॥ दीहाणि जो वि चितइ हय-विहि-आयत्तयाणि कज्जाणि। सो ताणमसिद्धीए पच्छायावं समुन्वहइ ॥४५३।। संभिण्णसोय ! परिणय-वयत्तणं जं तए समाइळं। तं दुलहं पडिहासइ हय-विहिणो विलसिए विसमे ॥४५४।। पंचदिणा पाहुणगा पाणा कह तेसु कीरउ थिरासा' । अथिरेहिं थिरो धम्मो जइ धिप्पाइ किन्न पज्जत्तं ॥४५५।।
ता किमेयस्स कुलक्कमागयस्स सामिसाल-सुयस्स अम्हाणमवरिमच्चंतविस्संभमुवगयस्स विसयासेवण-पदंसणेण. बाहिरओ मित्तत्तणं पदंसिय परमत्थओ सत्तत्तणं पयासेसि । जओ--
१. सणियं च ओत्तिण्णो जे । २ मोताहलाणि ति पा.। ३ गेहऊण पा.। ४. रउचिरा. पा. ५. सिया पर.जे.।
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