SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जुगाइजिदिचरियं ।। २६५१ ।। ।। २६५३ ।। मत्थइ पडड़ ।। २६५४ ।। ।। २६५५।। ॥२६५६॥ ।। २६५७।। | किर कय-परिमिय-करवत्त-सलिल-विच्छेय-सुक्क उठ्ठउडा । तुरियं तुरियं वच्वंति जत्थ पहिया मरुत्थली ॥२६५० ॥ जम्मि नह-संगाओ रथ- संग-पत्रमाण-सोहाओ । मालिन कारिणीओ पंसुलि सरिसाओ धूलीओ उम्मग्ग-गामिणीओ ढंकाविय मत्ययाओ मलिणाओ । कुडिलायण - सरिसाओ वहति वाउलिय- पंतीओ ॥२६५२ ।। एारसम्मकाले कायर - जण जणिय-चित्त-संतावे । पवणेह व मेरुगिरिन चलइ झाणाओ बाहुबली अह तसु तत्थ वसंत ॥ मुणिवरह | वासारतु पवन्नउ जीव-सुहंकरह धडहडइ । जल-पवाहु गयणयलह तस धाराहरु गुरु-धारहिं वरिसइ सत्त-रत्तु वरिसंतु न थक्कइ एक्कु खणु । सिसिरसमीरण-संगिण कंपड़ जेथ तणु तलि कद्दमु सिरिपाणिउं जणमण - सुह-हरणु । तहि वि सुनंदा-तणयह न चलई धम्मि मणु दुपय-चउप्पय-सयल- जीव-संरुद्ध पहि पय-पूरिण वरिसंतेण दुग्गम-मग्ग महि रोरु वि करि खुप्पंतु किलेसि संचरइ । विगय-दप्पु जहि सप्पु वि विलह न नीसरइ दियरु दिवसि न दीसइ निसियरु न वि निसिहि । जलहरु रुद्ध नहंतर वरिसइ दस- दिसिहिं विज्जुज्जोयणु जोयइ वणु विम्हिय-मणउ । अज्ज वि चलइ न ठायह रिसहेसर त उ तहि पाउस झाण-ट्ठिउ मुणिवरु बाहुबलि । को वि कालु आकंठु निवुड्डुउ गमइ जलि जिह रणि सबलु जिवि, भरहु जय-सिरि धरई । दुसह परीसह जिणवि सिद्धि तव किरि करइ सुरगिरि-गरुय-नियंब जम्मि सायर-रसण हरिय-हरिय-जण-मणहर - नीलंसुय' - वसण कुडय - कुसुम - सिय-दसण मलय- दद्दर-सिहिण इंदगोय-घट्टिल्ल विरायइ महि-महिल सामल-मुह- पीणुन्नय-पओहरोवरि बलाय - रिछोली । पाउस सिरीए सोहइ निम्मल - वर-हार- सरिय व एवंविहे वि पाउस - समए संजणिय जण-मण- वियारे । मणयं पि मणो न चलइ बाहुबलि - मुणिस्स झाणाओ निच्च-चित्तं दट्ठूण मुणिवरं लज्जिउ व्व घण- समओ । सामलिय-मुह तुरियं खलो व्व अद्दंसणो जाओ पत्तु सियालउ कालु कयत्थिय-सयल जणु । जहि अग्घइ कंबलु जणि संबल अनु जलणु तहि एवंविह कालि चराचर - जीय-सरणु। मुणि मज्जाय न मेल्लइ वसिकिय-निय करण गंध-तेल्ल-घण- घुसिणु निवायउ पिय सउडि । निद्धाहरु मणिच्छिउ गुडु गोरसु सयड 10 जाहं एह सामग्गी ताहं घरंगणइ । सिउ11 थक्कउं निभिच्चु भिच्चु जिंव 12 अलगइ 1 1 भणियं च- कुवि घण-थर्णाह निवारइ कु वि ओढइ पडउ । काहिं वि घरि पइसारु वि न लहइ बप्पुडउ पेल्लिज्जंतु 43 धणिड्ढिह दीणु दयावणउ | गयउ सीउ सविलक्खु दलिद्दिय- पाहुणउ जत्थुत्तर-पवण-वसुच्छलंत - खर- सिसिर-कंपिर- सरीरा । जम्मंतर कय दुकयं निद्धण- चंगा अणुहवंति सिय-संकोडिय-गत्ता काणण-पवगा जहि मिलेऊण । जलणो त्ति निबुद्धीया गुंजा-पुंजे पंति माह - मासि सिउ सिसिर - समीरणु संचलिउ । दालिद्दियहं सरीरिहि नं पविसइ गलिउ तहि सीयालइ कालि पवन्नइ रवरवइ । तिल-तुसमेत्तु विचित्तु न बाहुबलिहि चलइ समुच्छइ फा जे० । ५. रोरु वि कलिखु पा० । ८. नीरुसुय पा० । ६. न लहइ पा० । १ म्मि नाह पा० । २. कुडला पा० । ३ वायलि पा० । ४ जे० । ६. यण योजइ थणु जे० । ७. सिद्धति वं करि क १. सघडि जे० । ११. सिय थ० पा० । १२. जं व जे० । १३. ज्जंति ध० पा० २३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only ।। २६५८।। ।। २६५९।। ॥२६६०॥ ।। २६६१।। ।। २६६२।। ।।२६६३ ।। ।। २६६४ ।। ॥२६६५ ॥ ।। २६६६ ॥ ।। २६६७।। ।।२६६८।। ।।२६६९।। ॥२६७० ॥ ।। २६७१ ।। ।। २६७२ ।। ॥२६७३॥ ।। २६७४ ।। ।। २६७५ ।। ।। २६७६ ।। ।। २६७७ ।। ॥२६७८ ।। www.jainelibrary.org
SR No.001593
Book TitleJugaijinandachariyam
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy