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जुगाइजिणिदचरियं
भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहि देवेहिं । नरनारिगणेहिं तहा समंतओ भत्तिभरिएहिं ।।१६६२।। कयपरिवेढो चल्लइ तूरनिनाएण पूरियदियंतो। आणंदियसयलजिओ जिणिदचंदाण पवरबली ।।१६६३।। बलिपविसणसमकालं पुव्वदारेण ठाइ परिकहणा। तिउणं पुरओ पाडणतस्सद्धं अवडियं देवा ।।१६६४।। अद्धद्धं अहिवइणो अवसेसं होई पागयजणस्स। सव्वामयप्पसमणी कुप्पइ नन्नो वि छम्मासं ।।१६६५।।
एत्थंतरे उद्रिओ भगवं उत्तरवारेण निग्गंतुण पढमबीयसालंतरसंठिए ईसाणकोणे मणिमयसिलावट्टए देवछंदए गंतृण नवन्नो। उसहसेणगणहरो वि भगवओ पायपीढे निसन्नो। महरगंभीराए भारईए सुरासुर-नर-तिरियसंवाहाए परिसाए धम्मदेसणं काउमारद्धो। गणहरधम्मदेसणाए इमे गुणा भगवओ खेयविणोओ कओ। हवइ सीसगुणा दीविगा होंति उभयस्स वि पच्चओ हवइ सीसायरियकमो अणुवत्तिओ हवइ। भणियं च--
खेयविणोओ सीसगुणदीवणा पच्चओ उभयओ वि । सीसायरियकमो वि य गणहरकहणे गुणा होति ।।१६६६।। राओवणीयसीहासणे निविट्ठो य पायवीढम्मि। जेटठो अन्नयरो वा गणहारि कहेइ बीयाए ॥१६६७।। संखाईए वि भवे साहइ जं वा परो उ पुच्छेज्जा। न य णं अणाइसेसी वियाणई एस छउमत्थो ।।१६६८॥ तओ गणहरे धम्मदेसणं काऊण ठिए सुरासुरा भगवंतं पणमिऊण नंदीसरं गया।
सिरिवद्धमाणसूरीहिं विरइए रिसहनाहचरियम्मि जिणकेवलकल्लाणो तुरियाहिगारो परिसमत्तो ।। १६६९।। चउत्थो अहिगारो--
भरहो वि भगवंतं पूइऊण कयचक्कपूयापणिहाणो विणीयनयरि पविट्ठो। भगवं पि अन्नत्थ विहरिओ। चक्काहिवो वि घरं गंतुण कयमज्जणोवयारो धूव-पुप्फ-गंध-मल्लहत्थगओ सयलसामग्गीए विणीयनयरि मझं मज्झेणं पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमइत्ता जेणेव आउहघरसाला जेणेव से दिव्वे चक्करयणे तेणेव संपहारित्थ गमणयाए। चक्करयणस्स आलोए पणामं करेइ करित्ता लोमहत्थयं परामुसइ परामुसित्ता तं चक्करयणं लोमहत्थएणं पमज्जइ पमज्जित्ता दिवाए दगधाराए अब्भुक्खेइ अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितले चच्चिक्के दलयइ दलयित्ता अग्गेहि वरेहिं गंधेहि य मल्लेहि य चन्नेहि य वासेहिं य अच्चेइ अच्चित्ता पुप्फारुहणं मल्लाव्हणं आभरणारहणं करेइ करित्ता, अच्छेहि सण्हेहिं सेएहिं रययामएहिं अच्छरसातंदुलेहि चक्करयणस्स पुरओ अट्ठट्ठमंगलए आलिहइ, आलिहित्ता करयलविप्पमुक्केणं दसद्धवन्नेणं कुसुमभरेण पुप्फोवयारकलियं करेइ, करित्ता वरधूवं दहइ। वरधूवं दहित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करित्ता सत्तट्रपयाइं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता वामं जाणं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि निहट्ट तिखुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवाडेइ, निवाडित्ता ईसि पच्चोन्नमइ, पच्चोन्नमित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं अंजलिं मत्थए कट्ट चक्करयणस्स पणामं करेइ, करित्ता आउहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सिंहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीयित्ता अट्टारससेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेइत्ता एवं वयासी--"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! विणीयनयरिं उस्सुक्कं उक्करं अदेज्जं अमेज्जं अभडप्पवेसं अदंडकुदंडिमं गणिया वरनाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं पहयमुइंगं अमिलायमल्लदाम पमुइयपक्कीलियं सपुरजणुज्जाणजणवयं चक्करयणस्स अट्टाहियामहामहिमं करेह, करेहित्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह।" ते वि तह त्ति काऊण पच्चप्पिणंति ।।
तए णं से चक्करयणे अद्राहियाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवन्ने जक्ख-सहस्स-संपरिवुडे दिव्व-तुरिय-सद्दनिनाएणं फोडते चेव अंबरतलं गंगाए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थाभिमुहे पयाए यावि होत्था। तए णं से भरहेराया हट्ठ-तुळे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेइत्ता एवं वयासी--"खिप्पामेव भो! हय-गय-रह-पवर-जोहकलियं चाउरंगिणि सेण्णं सण्णाहेह, आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह १. गुण देवणा पच्च० पा० ।
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