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________________ प्रास्ताविक जैन दर्शन के प्रसिद्ध विद्वान् और विचारक पंडित श्री दलसुखभाई मालवणियाजीने शिवाजी युनिवर्सिटी, कोल्हापुर में डॉ. ए. एन. उपाध्ये की पुण्य स्मृति में दो व्याख्यान सन् १९७७ अक्तूबर में दिये थे इन्हें प्रकाशित करते बडा आनन्द होता है ।। ऐतिहासिक दृष्टि से दार्शनिक चिन्तन के विकास को यथातथ समझने का भरसक प्रयत्न करने वाले जो इनेगिने विद्वान हैं उन में मालवणियाजी का प्रमुख स्थान है । जैन दर्शन की प्रमाण और प्रमेय सम्बन्धी समस्याओं के चिन्तन के आगमों में जितने स्तर दिखाई देते हैं उन सबको स्पष्ट करते हुए उन्होंने इन दो व्याख्यानों में अपने दीर्घकालीन अध्ययन का सार रख दिया है। इन दो व्याख्यान 'गागर मे सागर' जैसे हैं और जैन विद्वानों के लिए विचार को नई दिशा दिखलाने वाले हैं । आशा हैं जिन दर्शनका आदिकाल' नाम से प्रकाशित किये जा रहे ये दो व्याख्यान जैन दर्शन में रुचि रखनेवाले सब के लिए रसप्रद . और उपयोगी सिद्ध होंगे । ला. द. विद्यामंदिर अहमदाबाद-३८०००९ १ दिसम्बर १९७९ नगीन जी. शाह अध्यक्ष. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001589
Book TitleJain Darshan ka Adikal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, Agam, & Canon
File Size4 MB
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