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सुभासियपज्जसंगहो
frei after दाणं कुणेसु गमणं मणोहरगईए । दंससु दसणे चवले ! जइ सि सुहत्थी मं भंदे ! ||५९ || वेरीणं मरणभयं, बंधूण मणोरहो, सुहं हलिणो । गोवीण वल्लहरसो, कण्हेण समं विवदंति ॥ ६० ॥ पाऊसप्पमुहाण व सुयणो दिप्पेवि देइ दोहगं । रुद्धो (? हो ) वि दुज्जणो उण दहणाईणं पि सोहग्गं ॥ ६१ ॥ | महिमं महासईणं किं भणिमो जाण पाणिमाहप्पा | आरंभी मोक्खफलो जाय, लच्छी वि कामदुहा ॥ ६२ ॥ उज्जेति कया विहु न हि जे पत्ते कह विपत्ते | चंडाल कूवजलसच्छ हेहिं किं तेहि विवेर्हि ? ॥६२॥ विहलियाहारतं किं भणिमो ताण दुज्जणजणाणं । दुहिय- सुहिहिं मुक्के सुह- दुक्खे जेसु अल्लीणे ॥ ६३ ॥ दाणं दीद्धरणं आगमसवणं सुतित्थजत्ता य । पवयणभत्ती अ मणुस्सजम्मतरुणो फलसमिद्धी ॥ ६४ ॥ ॥ किं तेणावि घडिज्जइ जो न हु सब्भावरसनिसित्तो वि । पुरिसो य पुहइपिंडो व भिज्जिओ अप्पमप्पे ॥ ६५ ॥ वियलियघणाण दाणं, जरजज्जरजुव्वणाण परिणयणं । मरणसरणाण धम्मो, किसिकम्मं सरयसमयम्मि || ६६ || अवियल [य] पणु च्चिय सयलाओ सुहं महंति महिलाओ । नियइणो च्चिय सुहमहलसंति जा ताओ पुण विरला ॥६७॥ जे वरिसंते वि चिरं पुक्खल मेहे गुरुस्स अमियरसं । भिज्जति किपि न हु मुग्गसेलसीलाण ताण नमो || ६८ || जह सजलमेहलेहाए पाउसो, माहवीए महुसमओ । ae aes सिरि पुरिसो गुणवणधरणीए घरिणी ॥ ६९ ॥ पिम्मं तं चिय जायंति जत्थ दोसा वि नणु गुण च्चेय । सिद्धरसो सो किर जत्थ हुंति लोहाई वि सुवन्नं ॥ ७० ॥ ते के वि कमलिणोए वि हवंति संतावदीहरा दिया । मित्तो वि जेसु सह जीवणेण जीयं पि संहरइ ॥ ७१ ॥ सुपुरिसभरिया विनिहि (ट्ठि) याए वंभंडभंडसालाए । संप पुरिमा कमसो अववरमियरु व्व उव्वरिया ( २ ) ॥ ७२ ॥
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