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गाहारयणकोसो २१. अथ राजनीतिप्रक्रमः विरसाई जाइं पमुहे, अमयरसायंति जाई परिणामे । कज्जाइं ताई सुवियारियाई न जणे हसिजति ॥२३२॥ सालूरी कसिणभुयंगमस्स जं खिवइ मत्थए चलणं । तं मन्ने कस्स वि मंतवाइणो फुरइ माहप्पं ॥२३३॥ अंबयफलं सुपक्कं कुहियं विटं समुद्धओ वाओ । साहा डोल्लणसीला न याणिमो कत्थ परिणामो ? ॥२३४॥ कज्जं फलं व सरसं जायइ नियकालपरिणईपडियं । तमकाले धिप्पंत दुहावहं होइ विरसं च ॥२३५॥ तिसु जे अवुत्थपुव्या रायकुले महियले य सेवासु । विण्णाण-नाण-लत्तणाण ते बाहिरा पुरिसा ॥२३६॥ सिद्धं तं मनिज्जइ जं सिज्झइ साम-भेयनीईए । सिद्धं पि तं असिद्धं पहाणपुरिसक्खओ जत्थ ॥२३७।। अणुयत्तह भणह पियं जं कज्जं तं मुणेह चित्तेण । महुरं लवइ मऊरो सविसं च भुयंगमं गिलइ ॥२३८॥ गरुयाई चिय साहइ पुरिसो कज्जाई नत्थि संदेहो । रोसो सुरंगधूलि व्व जस्स न हु पायडो होई ॥२३९।। सुहडो न सो पयंगो आवट्ठइ जो जडोपइट्ठो व्व ।। अपहारियसुहकज्जो निक्कजं चेव खग्गम्मि ॥२४०॥ कडुयं पि नागरं चिय परिणाममयं, विसं न महरं पि । रिउणो वि वरं सुयणा, मित्ताई न उण खलपगई ॥२४१॥ समए चिय कीरता फलंति किरिया सुहा व अमुहा वा। मेहाणं पि जलाइं दहति चित्तासु पडियाई ॥२४२॥ किं चोज्ज ठाणवसेण जं असंतो वि जायए महिमा । संघडइ महुरिमा घणगयाण लवणोयहिजलाणं ॥२४३॥ पडिवक्खेसुं तेयस्सिणा वि चरियव्वमप्पमत्तेण । वुट्ठीसु रवी पुरकयवाओ चिय पयडइ पयावं ॥२४४॥ किंपि पयं अहिरूढो लहुओ वि ददं तवेइ गरुयं पि । पयतलकंटयलेसो वि दहइ आमत्थय देहं ॥२४५॥ १. “दर्दुरी–देशीश." इति प्रतौ टिप्पणी ॥ २. जो तं फु प्रतिपाठः ॥
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