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________________ Appendix-D . 0.10. 105. कुरु प्रगुणां करे कृपाणिकाम् 189.31. 106. कुलपतेः समj ताम् 200.22. 107. कृतमतिक्रान्तवस्तुचिन्तया 197.15. 108. कृतमतीवदुष्करं त्वया 184.19. 109. कुतस्तवेदृशस्यास्य नाटयवैदस्पाधिगतिः 158.28. 110. कृतोवर्वावस्थानः 133.17. 111. केन ते दुर्मतिरियं दत्ता 196.4. 112. केन संक्रामिता (त्वयि) इयमंगहाराणां गति. 158.29ff. 113. केन स्थिता व्यापारेण देवी 228.4ff. 114. केनापि महता कार्यान्तरेणान्तरैवोपस्थितम् 130.20. 115. केयमत्रभवती, क्व वा जातपरिचया 199.30. 116. केवलमगाधशोकजलधौ निक्षिप्ताः 130.16. 117. केवलम्दिानी न वक्तव्योऽहमन्यत् किमपि 58.1. 118. कोऽहमुपकारक्रियायामस्याः 183.26. 119. कोऽहं तव पराजये 57.17. 120. क्लेशमतिमहान्तमासाददिष्यति 114.14ff. 121. क्व भूत्वा कालमतिवाहयामि मन्दभाग्या 12.31. 122. क्व यासि दृष्टः ? पतितोऽद्य दृष्टिगोचरे 224.4ff. 123. क्षपा विराममभजत 103.4. 124. क्षयमगाद्रजनिः 148.4. 125. क्षितौ पदं बध्नाति 25.31. 126. गुप्तेन भूत्वा प्रापणीयः लेखः 204.16ff... 127. गते च तत्र (use of तत्र for तस्मिन् in Loc. Abso.) 204.19 128. गतोऽस्यधस्तादनेन दुश्चेष्टितेन 224.4. 129. गृहाण तावन्मूकताम् 230.10. 130. गृहे स्थितिमपारयन्ती कर्तुम् 241.22. 131. घटितश्च विनाशः 65.19. 132. चलितस्तावदहमभिलषितमुद्देशम् 222.21ff.. 133. चैतन्यालिंगितः 55.6. 134. जगाम परिणाममप्रतकितैव रजनिः 87.12. 135. जोषमभवत् 86.11. 136. तत इतः 37.15; 155.25. 137. ततोऽयमपि तिष्ठतु 65.24ff. 138. तत्र क्षणे (use of तत्र for तस्मिन् in Loc. Abso.) 169.14. 139. तत्र हि कृते (use of तत्र for तस्मिन् in Loc. Abso.) 191.6; तत्रान्ताहिंता याम् (use of तत्र for तस्याम् in Loc. Abso.) 236,7. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001574
Book TitleTilakmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanpal Mahakavi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages474
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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