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________________ प्रमाणातिकभाषास्य कारिकार्यपादसूची सामान्यं प्रत्ययत्वं च ३. ९५७. ३.८७ सामान्यं प्रत्ययत्वं च ३. ९५९, ३८७ सामान्यं यत्र तत्रास्ति ४. ५२८. ६१८ सामान्य यदि धर्मि स्यात् ४. ७२ ४८३ सामान्य वा विशेषो वा ४, ९९. ४९७ सामान्यमहोऽर्थस्य ३. २८९. २३८ सामान्यतो विशेषस्य ३. ३४.१. -२७३ सामात्यमुभयत्रापि ३. २३". २१६ सामान्यमेव शब्दस्य ३ ६. १७० सामान्ययोगस्तद्विति ४. ३३६. ५७३ सामान्ययोगो व्यावृत्ति ४. ३३६. ५७३ सामान्यरूपयो दाद् ४. ३७२. ५८५ सामान्यलक्षणं तत् स्यात् ३. ४. १७० सामान्यविषयं यस्मा ३. १०.२. १७८ सामान्यविषयप्रोक्तं २. १४४. १८ सामान्यवेदने तत्र २. ४६. ९ सामान्यल्यतिरेफित्वं ३. १५८. १८७ सामान्यस्यापि सद्भावे १. ३.४० ५७४ सामान्याक्षिप्यमाणस्य २. '४३. १८ सामान्धात्मकतायां हि ३. २१४. २०७ सामान्यादिस्वरूपेण ४. २४२, ५४६ सामान्यान्नियमः प्रामौ ४. १००. ४९७ सामान्याव्यभिचारित्वाद् ३. २८६. २३७ सामान्येन प्रहस्तत्र .. १०३५. १०८ सामान्येन च सम्बन्ध २. २१७. २९ सामान्येन यन्दि प्रयोजनविधिः ४. ३८३.५८७ सामान्मेन विशेषेण २. १४३. १८ सामान्येनान्वये सिद्धे ४. १.३. ५०० सामीप्यादेव-नो हेतु २. ७२६. १३३ सारूप्याद् बुद्धिता प्राप्ता ३. ११०६. ४३० सारूप्याबविपत्ती च ३. ९५८. ३८७ सालम्बनत्वेन यतः ३. २६४. १२२ सालम्बनः प्रसाध्येत ३. ६९९. ३६१ साहित्वेऽनुमितिः शयतें २, ५२६. ९१ सितमीलादिभेदश्च ३. ८५०. ३७८ सिससातादिमेदोऽपि ३. ८५१. ३७० सिद्धं रूपं हि यद् भोग्यं २. १०१. १४ सिद्धत्वेन न तत् कार्य २. ९६. १४ सिद्धमेकं यतो ब्रह्म २. ९६. १४ सिद्धसाधनता कस्मा ३. ८४८. ३७८ सिद्धसाधनमन्यत्र ३. ३२२. २६.. सिद्धस्याप्यनुमानादें ३. ५८९. ३३३ सिद्धान्तो हि न सर्वस्य २. १२२. ६३ सिद्धायां तस्य सत्तायां ३. १०५१. ४१३ सिद्धिमृच्छति नैवात्र ४. ५६९. ६३३ सिद्धिमृच्छति सन्देह २. १९८. २५ सिद्धिश्चेत् परमाणूना २. ३१२. ४१ सिद्धेनोपहतं चेतः ३. ६८९. ३६० सिद्धोऽपि यधनुष्ठेयो २. ३९. ९ सुखं संसारिभिः सर्व ३. ६४१. १२० मुखं सर्वापदां हेता ३. ४८०. ३११ सुखत्वासासम्मूढः २. ७९४. १.४४ सुखदुःखविनिर्मुक्तो ३. ५२२. ३२५ सुखदुःखादिमेदोऽयं ३. ८५९. ३५८ सुखस्य तद्विविक्तत्वे ३. ४५६. ३०७ सुखस्यामहणं रूप २.४९६. ३१५ सुखस्यापि तथा दुःख २. ६३९, ११९ सुखादयस्तु रूपादि ३. ५०६. ३१८ सुखादयोऽपि किं तस्मात् ३. ४९०. ३१३ सुखादयोऽपि नेवामी ३. १०८९. ४२७ सुखादयो यदाभ्यासात् २. ६४०. १२० सुखादितापरिज्ञाना ३. ५२६. ३२३ सुखादिना विकारेऽस्य ४. ५०४. ६११ सुखादि नीलादि विना २. ५२४. ९१ सुखादिमेदात् संवित्त २. ८१३. १५१ सुखादिरूपत्वेन. ३. १०४०. ४०९ सुखादिव्यतिरेकेण २. ८१३. १५१ सुखादीनां तु रूपस्य ३. ४७२. ३०८ सुखादीनां त्वनित्यत्वे ३. १९३. ३१४ सुखायन्विततार्थस्य ३. ३१४. २६१ सुखानामपि चेदेव ३. ५४०. ३२८ सुसित्वं यदि मोोऽपि २. ७५०, १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001569
Book TitlePramanvartik Bhasyasya Karikardhapad Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages84
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, G000, & G005
File Size2 MB
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