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________________ $ प्रमाणवार्तिकस् स त्वत्यन्तमशक्तेभ्यो २. २५७. ३७ सदर्थत्वेऽपि कालस्य ३. १९९. २०४ सदा प्रामाण्यमस्यास्ति २. ८७८. १६५ सदाऽवियोगादेकं तद् ३. १०४३. ४१० सदृशेनैव रूपेण ३, ४. १७० सदृशोऽयमिति प्राप्त ४. ९०. ४८९ सदैव पापात् विरत ४. ५०८. ६१२ सद्भावेऽध्यात्मनो नास्ति ३. ७७. १७७ स धूमे हि प्रदेशोऽमि ४. २००.५३६ स नास्ति प्रथमोल्लङ्घनं ४ २१०. ५३७ सन्तानकारणं यत्तु २. ४७५. ७८ सन्तानस्य च सामर्थ्यात् ३.६०. १७६ सन्तानस्य ततोऽन्यत्वे ३. ५७. १७६ सन्तानस्यापि कार्यस्वे ३. ६१. १७६ सन्तानातिशयादेव ३. ४८०. ३११ सन्तानान्तरमत्रोंपि ३. ६२. १७६ सन्तानान्तरसञ्चारे ३. ६१. १७६ सन्दशैरिव विज्ञाने ३. ३७५. २८५ सन्दिग्धं च गृहीतं च ४. ४७४. ६०२ सन्दिग्धेऽपि परापेक्षा ३. ४२२. २९४ सन्दिग्धे हेतुवचनाद् ४. x ५१८ सन्देहं तदभावोऽस्तु २. २१५. २९ सन्देहमात्रव्यावृत्त्या २.२१२. २९ सन्देहस्य निवृत्तिर्हि २. १८१.२४ सन्निवेशविशेषेण २. ५३९. ९५ सपक्षाच्च विपक्षाच्च ४. ५५२. ६२८ सपक्षाव्यतिरेकी चे ४. ५४५. ६२४ सपक्षे सन्नसद् द्वेधा ४. ३५३. ५८० स पूर्वमपि दृष्टत्वात् ४. ५९९. ६४४ सप्तम्या पूर्वभावस्य २. ४३८. ६८ स प्राह कुक्षेर्जायन्ते २. ३८९. ५५ सबाधकत्वं न तथार्थं ३ ९२५. ३८४ समनन्तरविज्ञानात् २. ५७३. १०२ समर्थकार ( ? ) दृष्टानां ४. २४३. ५४६ समवायप्रमाणं च ३. १०९० ४१७ समवायबलादर्थो २. ५४५. ९६ Jain Education International समवायसमावेशात् ३. १०९०. ४२७ समवायसंबन्धबलात ३. ५९१. ३३४ समवायिप्रतीतौ न २. ५४७. ९६ समवायेन किं नास्ति ४. १२३. ५१२ समान एव शारीरः २. ५७१. १०१ समान एवोभयथा ३. २५६. २२० समानकालता नास्ति ३. ६०६. ३३९ समानकालियोरेव ३. ६८. १७६ समान कायोर्नास्ति २. ६६०. १२४ समानकालविन्मात्रान ३. ४५६. ३०७ समानकालवृत्तौ वा ३. ७५०. ३६८ समानकालव्यक्तीना ४ x ४८० समानकालस्याप्यस्य ३. ५०४. ३१७ समानता हि सामान्य ४ २४३. ५४७ समानतोपलम्मे वा २. ८२२. १५१ समानत्वानुमिते ३ x २६८ समानत्वान्निमित्तस्य २. २१०. २८ समानदेशकालत्वे ४. १५२. ५१५ समानदेशताभावा ३. ५९० ३३४ समानविय व्यक्ति ४. ३१७. ५७१ समानमत्र वेदेऽपि २. १२६. १६ समानमेतत् सामान्ये ३. १६०, १८७ समानविषया यस्माद् ३. ५३३. ३२८ समानाकार सद्भाषा २. १७२. २४ समानीधारतार्थाना २. ५४४. ९६ समानेऽपि तदात्मत्वे ४. ४८४. ६०४ समानेऽपि समानत्वं २. ५८६. १०७ समासव्यासरूपेण ४. २७. ४७३ समाहारयहे नास्ति ४. ३०४. ५७० समाहितस्य सकलं ३. ५५४. ३२९ समीहितफलावाप्ति ४. २२४. ५४० समुदायप्रसिद्धिश्चेत् ४, २८३. ५६१ समुदायात तथा स्याच्चेद् ३. ३८६. २९१ समुदायात्तदन्यस्य ३. ७४७. ३६८ समुदायात् परस्त्वेको २. १६२. २२ समुदायार्थसाध्यत्वाद् ४. ३५४. ५८० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001569
Book TitlePramanvartik Bhasyasya Karikardhapad Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages84
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, G000, & G005
File Size2 MB
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