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________________ म सत्यशासन-परीक्षा दी है। जिस तरह आप्तके विषयमें विवाद है कि कपिल, सुगत तथा अर्हन्त आदिमें आप्त कौन है, उसी प्रकार परब्रह्माद्वैत आदि शासनोंमें सत्य कौन है यह भी विवाद एवं परीक्षाका विषय है। विषय इसके अनन्तर विद्यानन्दिने सत्यशासन-परीक्षाके प्रतिपाद्य विषयका स्पष्ट निर्देश करते हए लिखा • है कि 'वर्तमानमें पुरुषाद्वैत आदि अनेक दार्शनिक मत प्रचलित हैं, किन्तु वे सभी सत्य नहीं हो सकते क्योंकि एक ओर उनमें पारस्परिक विरोध देखा जाता है और दूसरी ओर प्रत्यक्ष तथा अनुमान आदि प्रमाणोंकी कसौटीपर भी वे सत्य नहीं उतरते । इसलिए प्रस्तुत ग्रन्थमें सभी शासनोंको प्रमाणकी कसौटीपर कसकर यह देखा जायेगा कि कौन-सा शासन सत्य हो सकता है । (६२) इसी प्रसंगमें विद्यानन्दिने एक प्रश्न उठाकर उसका समाधान किया है प्रश्न-जब कि सभी दर्शनोंमें पारस्परिक मतभेद देखा जाता है तो सभी असत्य होना चाहिए, कोई भी सत्य नहीं हो सकता? उत्तर-प्रकाश और अन्धकारकी तरह एकान्त-अनेकान्त, द्वैत-अद्वैत तथा भाव-अभावके निषेधमें भी विधि है। क्योंकि जिससे जिसका निषेध किया जा रहा है उन दोनोंमें-से किसी एकका सत्य होना नितान्त आवश्यक है। एककी विधिके विना दूसरेका निषेध नहीं बन सकता। इसलिए यह कहना युक्तियुक्त नहीं कि पारस्परिक विरोध देखे जानेके कारण कोई भी दर्शन सत्य नहीं है प्रत्युत जो शासन प्रमाणकी कसौटीपर सही उतरे वह अवश्यमेव सत्य है । (६२) इतना कहने के बाद विद्यानन्दिने प्रारम्भमें ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अनेकान्त शासन ही सत्यशासन है, क्योंकि परीक्षा करनेपर वही प्रत्यक्ष तथा अनुमान आदि प्रमाणोंसे बाधित नहीं होता (६४) ____ इस पृष्ठभूमि के साथ सत्यशासन-परीक्षामें पुरुषाद्वैत आदि चौदह शासनोंकी परीक्षा करनेकी प्रतिज्ञा की गयी है। प्रत्येक शासनके पूर्वपक्षमें उसके मूल-ग्रन्थोंसे उद्धरण देकर सर्वप्रथम उस शासनके मन्तव्योंका वर्णन किया गया है, इसके बाद उत्तरपक्षमें उनकी समालोचना तथा अनेकान्त शासनको निर्दुष्ट सिद्ध किया गया है, जिसके लिए विद्यानन्दिने अपने तोंके अतिरिक्त पूर्वाचार्योंके वाक्योंको भी प्रमाण रूपमें उद्धृत किया है। प्रत्येक शासनके अन्तमें विद्यानन्दिकी स्वनिर्मित दो या तीन कारिकाएँ हैं। विषय विभाग सत्यशासन-परीक्षामें जिन शासनोंकी समीक्षा की गयी है उनका वर्गीकरण निम्नप्रकार है१. पुरुषाद्वैत ८. निरीश्वर सांख्य २. शब्दाद्वैत ९. नैयायिक ३. विज्ञानाद्वैत १०. वैशेषिक ४. चित्राद्वैत ११. भाट्ट ५. चार्वाक १२. प्राभाकर ६. बौद्ध १३. तत्त्वोपप्लव ७. सेश्वर सांख्य १४. अनेकान्त इन चौदह शासनोंको विद्यानन्दिने दो श्रेणियों में विभक्त किया है -१. अद्वैतवादी या अभेदवादी, २. द्वैतवादी या भेदवादी अद्वैतवादी-अद्वैतवादी शासनोंसे प्रयोजन उन दार्शनिक संप्रदायोंसे है जो केवल किसी एक तत्त्वको मानते हैं। चाहे वे परमब्रह्माद्वैतको माननेवाले वेदान्ती हों या विज्ञानाद्वैतको माननेवाले बौद्ध । इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001567
Book TitleSatyashasana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages164
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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