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________________ प्रस्तावना [ १ ] सम्पादन परिचय [ अ ] प्रति परिचय प्रस्तुत ग्रन्थके मूल पाठकी शुद्धिमें निम्नलिखित तीन हस्तलिखित प्रतियोंका उपयोग किया गया है 'क' - यह श्री जैन सिद्धान्त भवन, आरा ( बिहार ) की प्रति है । वहाँ इसकी ग्रन्थसंख्या १०७ है । इसमें १३x६ इंच साइजके कुल २९ पत्र हैं । एक पत्र में एक ओर १२ पंक्तियाँ तथा एक पंक्ति में करीब ५० अक्षर हैं । लिपि देवनागरी है । लिखावट साफ किन्तु अशुद्ध है । ग्रन्थ उत्तम दशा में है । इसका प्रारम्भ इस प्रकार है “ॐ नमः सिद्धेभ्यः । विद्यानन्दाधिपः स्वामी विद्वद्देवो जिनेश्वरः । यो लोकैकहितस्तस्मै नमस्तात् स्वास्मलब्धये ॥ अथ सत्य शासन - परीक्षा ।" अन्त इस प्रकार है " हि निदेशासु व्यक्तिषु सामान्यमेकम्, यथा स्थूलादिषु वंशादिरिति प्रतीयते, यतो युगपदभिन्नदेशस्वाधारवृत्तित्वे सत्येकत्वं तस्य सिद्धयेत्, स्वाधान्तरालेऽस्तित्वं साधयेदिति तदेवमनेकबाधकसद्भावाद् भाट्टप्राभाकरैरिष्टं" 'भद्रं भूयात् ।" प्रतिके आरम्भ अथवा अन्तमें कहीं भी लिपिकार या लिपिकालका संकेत नहीं है । सर्वप्रथम मैंने इसी प्रतिसे प्रेसकापी की थी; इसलिए इसका संकेत चिह्न 'क' रखा है । अशुद्ध होने के कारण इसे पूर्ण रूपसे मूल प्रति न माननेपर भी सम्पादनका प्रथम आधार यही प्रति रही है । 'ख' - यह प्रति श्री जैन मठ मूडबिद्रीके शास्त्रभंडारकी ताडपत्रीय प्रति है । वहाँ के शास्त्रोंमें इसकी संख्या ६५२ है । इसमें २० ॥ ४१ ॥ इंचकी साइज के १९ ताडपत्र हैं । प्रत्येक पत्रके दोनों तरफ ग्रन्थ लिखा गया है । केवल पहले पत्रके एक ओर लिखा है । प्रत्येक पत्र में प्रायः ८-८ पंक्तियाँ हैं, कुछमें ७ पंक्तियाँ भी हैं । प्रति पंक्ति में ९८ से १०० तक अक्षर हैं । प्रति पत्रमें दोनों किनारे हासिया (मार्जिन ) है और बीचमें दो जगहपर डोरी पिरोनेके लिए छेद बने हैं । ग्रन्थ उत्तम दशा में है। इसकी लिपि कन्नड है । अक्षर साफ, सुन्दर और सुवाच्य हैं । लिपिकारने कहीं-कहीं सुन्दर बेल-बूटे भी बनाये हैं | भाषा-संबन्धी अशुद्धियाँ इसमें भी हैं । ग्रन्थका प्रारम्भ 'ॐ नमः सिद्धेभ्यः' के बाद पूर्वोक्त मंगलपद्यसे ही होता है । अन्त भी 'क' प्रतिको तरह ही है । आदि, मध्य या अन्तमें कहीं भी लिपिकारका नाम तथा लिपिकाल आदिका उल्लेख नहीं है । इस प्रतिका संकेत चिह्न 'ख' है । 'ग' - यह प्रति भी श्री जैन मठ, मूडबिद्रीके शास्त्र भंडारकी है । वहाँ इसकी ग्रन्थसंख्या ५५२ है । इसमें १३x२ इंच साइजके कुल ४३ पत्र हैं । प्रत्येक पत्र में एक ओर प्रायः ७-७ पंक्तियाँ हैं । कुछ में ६-६ पंक्तियाँ भी हैं । प्रति पंक्ति में ५० से ५२ तक अक्षर हैं । प्रत्येक पत्रमें दोनों ओर हासिया ( मार्जिन ) छोड़ा गया है । बीच में डोरी पिरोनेके लिए एक छेद भी है । ग्रन्थ उत्तम दशा में है । इसकी भी लिपि कन्नड है। अक्षर साधारण सुन्दर तथा सुवाच्य हैं । प्रथम पत्र थोड़ा-सा टूट गया है, जिससे दो-तीन अक्षर भी चले गये हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001567
Book TitleSatyashasana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages164
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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