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________________ विषय-सूची ३०-३३ सन्तान अर्थात् चित्तसन्तति चित्तसन्तति ही श्रात्मा सन्तानोच्छित्ति मोक्ष मोक्षका स्वरूप मोक्षके उपाय चार आर्यसत्य-दुःख, दुःख-समुदय, दुःख-निरोध, दुःख-निवृत्ति अष्टाङ्गिक मार्ग [ उत्तरपक्ष ] बौद्धमत प्रत्यक्ष-विरुद्ध है निरन्वय, विनाशशील परमाणुका प्रत्यक्ष नहीं होता आसन्न और संसृष्ट परमाणुओंमें स्थिर, स्थूल आदिका ज्ञान नहीं बौद्धसम्मत प्रत्यक्ष लक्षण नहीं बनेगा निर्विकल्पक प्रत्यक्षसे परमाणु प्रत्यक्ष नहीं परमाणु प्रत्यक्षका विस्तृत खण्डन सांख्यशासन-परीक्षा [ पूर्वपक्ष ] संसार प्रधानमय है प्रधानका स्वरूप सत्त्व, रज और तमोगुण संसारकी उत्पत्तिका क्रम प्रकृति, प्रधान, बहुधानक आदि नाम महान् , अहंकार, पञ्चतन्मात्रा, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ निरीश्वर सांख्योंकी मान्यता संश्वरसांख्योंकी मान्यता पुरुषका स्वरूप प्रकृति और पुरुषका भेद-विज्ञान मोक्षका स्वरूप और उसके उपाय [ उत्तरपक्ष ] सांख्यशासन प्रत्यक्ष-विरुद्ध है सम्पूर्ण जगत् प्रधानमय नहीं हो सकता 'सर्व सर्वत्र वर्तते' यह प्रत्यक्ष-विरुद्ध है आविर्भाव मानने में अनेक दोष तिरोभाव मानने में दोष सांख्य-सम्मत सृष्टिप्रक्रियामें दोष महदादिको प्रधानका कार्य मानने में दोष सत्कार्यवादका खण्डन असत्कार्यवाद मानने में दोष महदादिको प्रधानका परिणाम मानने में दोष प्रधान परिणामोंका उपकारक नहीं है महदादिको प्रधानसे भिन्नाभिन्न मानने में दोष rNNNN NNNNNN तीmmmmmmmmmmmmmmm - C000 ० ० ० ० ० ० ० ० ० ०ww WWW०००० ० ० ० ० ० Y Y ന ന ന ന ന ന ന Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001567
Book TitleSatyashasana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages164
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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