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सिरि- सिरिचंद सूरि - विरइयं सिरिमुणिसुव्वयजिणिंदचरियं
परमपुरिसो अणाईविहू अणंतो अनंग-निड्डहणो । चउराणणो तमहरो सिरी निवासो जिणो जयइ ॥ १ ॥ पयडिय-समग्ग-नय-धम्म- मग्गमोसप्पिणीए एयाए । रायाण य जेण जिणेसराण पढमत्तमुव्वूढं ॥२॥ तमहं नमामि उसहं सहति जस्संस-घोलिरा केसा । सिव-पासायारोहह्य भवियजणालंब - रज्जुसमा ||३|| सुरसेल-चलण-उग्गोवसग्ग - संघाय - सहण - लीलाए । बहिरंग - अंतरंगो परक्कमो जस्स निव्वडिओ ॥४॥ भवजलहि-मज्झ-मज्जंत-जंतु - संताण - तारण-समत्थं । तित्थं जेण पवत्तियमेयं पणमामि तं वीरं ॥५॥ सोसियअसेस-संसार-सायरे सायरं जिणे वंदे । सेसे विय नीसेसे निस्सेयस सोक्ख - दायारे ॥ ६ ॥ मिच्छत्त-महाविस-मुच्छियाण निम्मल -विवेयचेयन्नं । जीवाण जेण दिन्नं सुह - देसण - अमय - सेएण ॥७॥ मुत्तालयंतरट्ठाण-पत्तमाहप्पमुत्तमं तमहं । मरगय-मणि - समवन्नं नमामि मुणिसुव्वय जिणिदं ॥ ८ ॥ सिरिइंदभूइपभिईण वंदिमो गणहराण वरचरणे । जिण भणियपयत्तय-सवणओ वि अपयत्तओ चैव ॥९॥ अन्तमुहुत्तेणं चिय पयत्थ-परमत्थ- पयडण- समत्थो । नीसेस- अईसय जुओ सुय-जलही जेहि निम्मविओ ।।१०।। जनम्म अज्जवि धम्म- पयास करेंति आयरिया । इह भारहम्मि तमहं सुहम्मसामि नम॑सामि ॥। ११॥ जंबू मुणिदं वंदामि तमहमेयम्मि भारहे वासे । जेण समं चिय पत्तो निव्वाणं केवल-पईवो ॥१२॥ जी अणुहिया सु-सागर - पारगामिणो हुंति । मुणिणो मणप्पसायं सा अम्हं कुणउ सुयदेवी ॥ १३॥ कुंदेंदुज्जल-वन्ना जिणिद-वयणारविंद- संभूया । वसउ वयणे इयाणि अम्हाण सरस्साई देवी || १४॥ जा विमल - दंसणधरा सुदंसणा दंसणिज्जवरदेहा । सा अम्ह समीहिय कज्ज - साहणे हणउ दुरियाई ॥ १५ ॥ ताण गुरूणं पय-पंकयाइं पणमामि परम भत्तीए । गरुयत्तं दितेहि वि जेहिं कओ कम्मलहुओ हं ॥ १६॥ इय वित्थारियrयव्व सत्थ-वित्थिन्न - संथुई अहयं । पत्थुय - वत्थुम्मि करेमि संपयं किंपि आरंभं ।। १७ ।। संतेसु वि इयर कईसरेसु संघेण भगवया कह वि । दिन्नो मह आएसो मुणिसुव्वय चरिय रयणम्मि ।। १८ ।।।
वि जडप्पा जइ विहु अणहिगया सेस सत्थ-परमत्थो । सहरिसहियओ तह वि हु एत्थ अहं संपयट्टिस्सं ॥ १९॥ आएस- कयपसाओ जेण अहं निग्गुणो वि संघेण । जाओ उत्तुद्धिसियमणो अवियारियनिययसामत्थो ||२०|| सत्ति - विवि अहं हंसणिज्जो बुहयणस्स न हविस्सं । हरिसिज्जिस्संति विसेसओ वि ते मज्झ विणएण ॥ २१ ॥ जह पियरेहिं भणिओ कम्मि वि कज्जे असक्कणिज्जे वि । कोऊहलेण बालो तुरियं चिय तो पयट्टेइ ॥ २२ ॥ तत्थ असक्कवियारा करणवराहं बुहा न गिण्हंति । किंतु विणीयत्तणओ हवंति गुण - गाहिणो तस्स ॥२३॥ सत्ती वि उल्लसंती संभाविज्जइ अविज्जमाणा वि । संघस्स पहावेणं महप्पणो संपयं मज्झ ॥ २४ ॥ साहाए साहंतर-गमणेच्चिय वानरो खमो होइ । सुव्वइय तेण तरिओ जलही वि पहुप्पहावेण || २५ ||
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