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________________ पदम-कृत श्रावकाचार अनन्तमती तिणि वार, कर्मतणा फल चिन्तवी ए। तब आर्यिका आवी एक, पद्मश्री नामें स्तवी ए ॥४० बाला देखी गुणवन्त, आर्या पूछे मीठी भाष ए। सकल कह्मो सम्बन्ध, साधर्मी जाणि विश्वास कीयो ए॥४१ आर्यिका लेई ते वाल, तेठी बावी श्री जिन-गेह ए। साहाय करे साधर्मी, सांचो सन्त गुण सस्नेह ए ॥४२ साधर्मी घरे आहार, तप जप संजम आचरि ए। विज्ञान विजन पाक, ते कन्या चतुराई करे ए॥४३ बम्या अन्न समान, भोग-वांछा न वि करे ए। सन्तोष धरि निज मन्न, आर्यिका पासे ते रहे ए ॥४४ तिण समये प्रियदत्त, पुत्री-वियोगे विह्वल थयो ए। दुःख विसामा काज, तीर्थजात्रा अजोध्या गयो ए॥४५ ते अ नगर मझार, जिनदत्त सालो वसे ए। साह आव्यो तेह गेह, सजन-सन्मान दे तस ए॥४६ पुत्रीविरह-सम्बन्ध, परस्परि ते जाणियो ए। बात करे सुख-दुःख, कर्म-विपाक बखाणियो ए ॥४७ प्रभात समय श्रेष्ठि, स्नान घौत वस्त्र पहिरिए । अष्टप्रकारी लेई पूज, जिनमन्दिरने संचरिए ए ॥४८ पूजे जिनवर-पाय, सद्गुरु स्वामी वंदिया ए। सांभली श्री जिनवाणि, धर्मध्याने आनंदिया ए॥४९ जिनदत्त केरी नारि, कन्या तेठी प्रीते जड़ी ए। अंगण पूराव्यु चौक, रसोई सन्धावी रूबड़ी ए ॥५० साधरमी करी काज, कन्या निज स्थानक गई ए। तब आव्यो प्रियदत्त, जोई मंडण सन्मुख थई ए॥५१ स्वस्तिक कीघो जेण, तेतेडो चौसाल कए । विस्मय पाम्यो साह, तब अ बीते बालक ए ॥५२ जब दीठी ते बाल, साह नेत्र नीर बहे ए। हा हा तू मुझ धीह, मुझ विण तुं किहां रही ए ॥५३ बाप बेटी तिण वार, कंठ लागी रुदन करी ए। . सजन सह परिवार, प्रतिबोध वाणी उचरी ए॥५४ अहो अहो कर्म-विपाक, पापकर्मे घियोग होइ ए । शुभकर्मे संजोग, जन पंडित सदा कहि ए ॥५५ पिता आगल ते पुत्री-हरण बात सवल कही ए। पछे जीम्या सज्जन, कन्या सुख तें रहो ए ॥५६ तात कहे सुणो धीय, हवे बावो आपणे घर ए। वलतुं कहे ते बाल, घर सुख पूरे मुझ ए ॥५७ दीक्षा देवारो अम्ह तात, जो वांछो हित मुझ ए। तात प्रशंसि धन्य मन्न, धन्य धन्य शील तुझ तणो ए॥५८ क्षमी क्षमावी सजन, पदमसिरि बालिका पासे ए। धरियो संजमभार, अनन्तमती ध्यान धरे ए ॥५९ समकित फले तेह, ज्ञान अभ्यास सदा करि ए। तीव्र करे बहु तप, जप ध्यान धर्म धरी ए॥६० जब जाण्यो क्षीण आय, समभावे संन्यास लीयो ए। छेदि नारीनो लिंग, समाधिमरण तेणे कीयो ए॥६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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