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________________ दौलतराम-कृत क्रियाकोष एकदेश गृहपति चारित्रा, द्वादश व्रतरूपी हि पवित्रा। जो पहली भाख्यौ अब तातें, कहो नहीं श्रावकवत तातें ॥१ इह रतनत्रय मुनिके पूरा, हो। अष्टकर्म दल चूरा । श्रावक के नहिं पूरण होई, धरै न्यूनतारूप जु सोई ॥२ इह रतनत्रय करि शिव लेवे, चहुं गतिकों व पानी देवे । या करि सीझे अरु सीझेंगे, यह लहि परमें नहिं रीझेंगे ॥३ या करि इन्द्रादिक पद होवे, सो दूषण शुभको बुध जोवै । इह तो केवल मुक्ति प्रदाई, बंधनरूप होय नहिं पाई ॥४ बंध-विदारन मुक्ति-सुकारण, इह रतनत्रय जगत उधारण । रत्नत्रय सम और न दूजो, इह रतनत्रय त्रिभुवन पूजो ॥५ रतनत्रय बिनु मोक्ष न होई, कोटि उपाव करे जो कोई । नमस्कार या रतनत्रयकों, जो दै परम भाव अक्षयकों ॥६ रतनत्रय की महिमा पूरन, जानि सकै वसु कर्म-विचूरन । मुनिवर हू पूरण नहिं जानें, जिन-आज्ञा अनुसार प्रवाने ।।७ सहस जोभ करि वरणन करई, तिनहूँ पै नहिं जाय वरणई । हमसे अलपमती कहो कैसे, भाषे बुधजन धारहु ऐसे ॥८ पन किरिया को यह मूला. रतनत्रय चेतन अनुकूला । जिन धार्यो तिन आपो तार्यों, याकरि बहुतनि कारिज सार्यो ॥९ धन्य घरी वह हगी भाई, रतनत्रयसों जीव मिलाई। पहुंचेगो शिवपुर अविनाशी, होवेगो अति आनन्द राशी ॥१० सब ग्रन्थनि में पन किरिया, इन करि, इन बिन भववन फिरिया। जो ए वेपन किरिया धारे, सो भवि अपना कारिज सारै ॥११ सुरग मुकति दाता ए किरिया, जिनवानी सुनि जिनि ए धरिया। तिन पाई निज परणति शुद्धा, ज्ञानस्वरूपा अति प्रतिबुद्धा ॥१२ है अनादि सिद्धा ए सर्वा, ए किरिया धरिवी तजि गर्वा । ठोर ठौर इनको जस भाई, ए किरिया गावै जिनराई ॥१३ गणधर गावें मुनिवर गावै, देव भाषमें शबद सुना। पंचम काल माहिं सुर-भाषा, विरला समझे जिनमत साखा ॥१४ तातें यह नर-भाषा कीनी, सुर-भाषा अनुसारे लीनी। जो नर-नारि पढ़े मन लाई, सो सुख पावै अति अधिकाई ॥१५ संवत सत्रासै पच्याण्णव, भादव सुदि बारस तिथि जाणव । मंगलवार उदयपुर माहे, पूरन कीनी संशय नाहे ॥१६ आनन्द-सुत जयसुतको मंत्री, जयको अनुचर जाहि कहै । सौ दौलत जिन दासनि दासा, जिनमारग की शरण गहै ॥१७ इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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