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दौलतराम-कृत क्रियाकोष द्वे मिथ्यात उपशमें जहां दूजी क्षय-उपशम है तहां।। प्रथम चोकरी द्वै मिथ्यात, ए षट क्षय होवे जड़तात ॥१९ तृतिय मिथ्यात उपशमैं भया, तीजो क्षय-उपशम सो लया। वेदकसम्यक चार प्रकार, ताके भेद सुनों निरधार ॥२० प्रथम चौकरी क्षय है जहां, दोय मिथ्यात उपशमैं तहाँ । तृतिय मिथ्यात उदय जब होय, पहली वेदक जानी सोय ॥२१ प्रथम चौकरी प्रथम मिथ्यात, ए पांचौ क्षय होय विख्यात । द्वितिय मिथ्यात उपशमैं जहां, उदय होय तीजेको तहां ॥२२ भेद दूसरी वेदकतणों, जिनमारग अनुसारें भणों। प्रथम चौकरी दो मिथ्यात, ए षट प्रकृति होय जब घात ॥२३ उदय तीसरी मिथ्या होय, तीजो वेदक कहिये सोय । प्रथम चौकरी मिथ्या दोय, इन छहँको उपशम जब होय ॥२४ उदय होय तीजो मिथ्यात, सो चौथो वेदक विख्यात । ए नव भेद सु सम्यक कहे, निकट भव्य जीवनिनें गहे ॥२५
दोहा
क्षय-उपशम वरतै त्रिविध, वेदक च्यारि प्रकार । क्षायिक उपशम भेलि करि, नवधा समकित धार ॥२६ नवमे क्षायिक सारिखौ, समकित होय न और । अविनाशी आनंदमय, सो सबको सिर मौर ॥२७ पहली उपशम ऊपजै, पहली और न कोय । उपशमके परसादतें पाछे क्षायिक होय ॥२८ क्षायिक बिनु नहिं कर्मक्षय, इह निश्चय परवानि । क्षायिक दायक सर्व ए, सम्यकदर्शन मानि ।।२९ उपशमादि सम्यक्त सर्व, आदि अन्त जुत जानि । क्षायिकको नहि अन्त है. सादि अनन्त बखानि ॥३० सम्यकदृष्टी सर्व ही, जिनमारगके दास । देव धर्म गुरु तत्त्वको, श्रद्धा अविचल भास ॥३१ अनेकांत सरधा लिया, शांतभाव धर धीर । सप्तभंग वाणी रुचै, जिनवरकी गंभीर ॥३२ जीव अजीवादिक सबै, जिन आज्ञा परवान । जाने संशय रहित जो, धारै दृढ़ सरधान ॥३३ सप्त तत्व षट द्रव्य अर, नव पदार्थ परतक्ष । अस्तिकाय हैं पंच ही, तिनको धारे पक्ष ॥३४ इष्ट पंच परमेष्ठिको, और इष्ट नहिं कोय । मिष्ट वचन बोले सदा, मनमें कपट न होय ॥३५
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