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________________ दौलतराम-कृत क्रियाकोष जै जिन आतमसों लव लाव शुकल तिनोंके श्रीगुरु गाव । शुकलध्यानके चारि जु पाये, ते सर्व ज्ञदेवने गाये ||७४ द्वै सुकला द्वे सुकल जु पर्मा, जानै श्रीजिनवर सहु मर्मा । प्रथम पथक्त वितर्कविचारा, पथक नाम है भिन्न प्रचारा॥७५ भिन्न भिन्न निज भाव विचार. गण पर्याय स्वभाव निहारै। नाम वितर्क सूत्र को होई, श्रुति अनुसार लखै निज सोई ॥७६ भावथकी भावांतर भावं', पहलो शुकल नाम सो पाव । दुजो है एकत्ववितर्का, अवीचार अगणित दुति अर्का ।।७७ भयो एकतामें लवलीना, एकीभाव प्रकट जिन कीना। श्रुत अनुसार भयौ अविचारी, भेदभाव परिणति सब टारी ॥७८ तीजो सूक्षम किरियाधारी, सूक्षम जोग करै अविकारी । चौथो जोगरहित निहकिरिया, जाहि ध्याय साधू भव तिरिया ॥७९ अष्टम ठाणे पहलो पायो, बारमठाणे दूजो गायो। तीजो तेरमठाणे जानों, चौथो चौदमठाणे मानों ।।८० इनके भेद सुनों धरि, भावा, जिनकरि नासै सकल विभावा। होहिं पवित्र भाव अधिकाई, जे अब तक हुए नहिं भाई ॥८१ भाव अनन्त ज्ञान सुख आदी, तिनको धारक वस्तु अनादी। लिये अनन्ता शक्ति महन्ती, धरै विभूति अनन्तानन्ती ॥८२ अपनी आप माहिं अनुभूती, अति अनंतता अतुल प्रभूती। अपने भाव तेहि निज अर्था, और सबै रागादि अनर्था ॥८३ अपनो अर्थ आपमें जानै, आतम सत्ता आप पिछाने ।। इक गुणतें दूजो गुण जावै, ज्ञानथकी आनन्द बढ़ावै ॥८४ गुण अनन्तमें लीलाधारी, सो पृथक्त वीतर्क विचारी। अर्थथकी अर्थान्तर जावै, निज गुण सत्ता माहिं रमावै ॥८५ योगथको योगान्तर गमना, राग द्वेष मोहादिक वमना। शब्दथकी शब्दान्तर सोई, ध्याव शब्द-रहित है सोई ॥८६ व्यंजन नाम शुद्ध परजाया, जाको नाश न कबहुँ बताया। वस्तुशक्ति गुणशक्ति अनन्ती, तेई पर्यय जानि महन्ती ॥८७ व्यंजनतें व्यंजन परि आवे, निज स्वभाव तजि कितहु न जावे । श्रुति अनुसार लखै निजरूपा, चिनमूरति चैतन्य स्वरूपा ।।८८ जैनसूत्रमें भाव श्रुती जो, प्रगटै अनुभव ज्ञानमतो जो। सो पृथक्कवितर्क विचारा, ध्याव साधू ब्रह्म विहारा ॥८९ दोहा जानि पृथक्त अनन्तता, नाम वितर्क सिद्धत । है विचार अविचार निज, इह जानों विरतन्त ॥९० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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