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________________ ३१८ श्रावकाचार-संग्रह अब सुनि ब्रत ग्यारमों मित्रा, तीजो शिक्षाबत पवित्रा। जे भोगोपभोग हैं जगके, ते सहु बटमारे जिनमगके ॥३१ त्याग राग हैं सकल विनासी, जो शठ इनको होय विलासी। सो रुलिहै भवसागर माही, यामें कछु संदेहा नाहीं ॥३२ एक अनंतो नित्य निजातम, रहित भोग उपभोग महातम । भोजन तांबूलादिक भोगा, वनिता वस्त्र आदि उपभोगा ३३ एक बार भोगनमें आगे, ते सहु भोगा नाम कहा। बार बार जे भोगे जाई, ते उपभोगा जानहु भाई ॥३४ भोगुपभोग तनों यह अर्था, इन सम और न कोइ अनर्था । भोगुपभोग तनों परमाणा, सो तीजो शिक्षावत जाणा ॥३५ छता भोग त्यागें बड़भागा, तिनके इन्द्राद्रिक पद लागा। अछताहू न तजें जे मूढ़ा, ते नहि होय ब्रत आरूढा ॥३६ करि प्रमाण आजन्म इनू का, बहुरि नित्य नियमादि तिनू का। गृहपतिके थावरको हिंसा, इन करि ह पुनि तज्या अहिंसा ॥३७ त्याग बराबर धर्म न कोई, हिंसाको नाशक यह होई। अंग विर्षे नहिं जिनके रंगा, तिनके कैसे होय अनंगा ||३८ मुख्य बारता त्याग जु भाई, त्याग समान न और बड़ाई । त्याग बनै नहिं तोहु प्रमाणा, तामें इह आज्ञा परवाणा ॥३९ भोग अजुक्त न करनें कोई, तजने मन वच तन करि सोई। जुक्त भोगको करि परिमाणा, ताहूमें नित नियम बखाणा ॥४० नियम करो जु घरी हि घरीको, त्याग करौ सबही जु हरीको । जे अनंतकाया दुखदाया, ते साधारण त्याग कराया ॥४१ पत्र जाति अर कन्द समूला, तजने फूलजाति अघ थूला। तजनें मद्य मांस नवनीता, सहत त्यागिवौ कहैं अजीता ॥४२ तजने कांजी आदि सबैही, अत्थाणा संघाण तजैही। तजने परदारादिक पापा, तजिवौ परधन पर संतापा ॥४३ इत्यादिक जे वस्तु विरुद्धा, तिनकों त्यागै सो प्रतिबुद्धा । सबही तजिवो महा अशुद्धा, अर जे भोगा हैं अविरुद्धा ।। ४४ भोग भावमें नाहिं भलाई, भोग त्यागि हूजे शिवराई । अपने गुण पर-जाय स्वरूपा, तिनमें राचै रहित विरूपा ॥४५ वस्त्राभरण व्याहिता नारी, खान पान निरदूषण कारी। इत्यादिक जे अविरुध भोगा, तिनहूको जाने ए रोगा ॥४६ जो न सर्वथा तजिया जाई नो परमाण करी बहु भाई । सर्व त्यागवों कहें विवेकी, गृहपति के कछु इक अविवेकी ॥४७ तो लगि भोगुपभोगहि अल्पा, विधिरूपा धारै अविकल्पा। मुनि के खान-पान इकवारा, सोहू दोष छियालिस टारा ।।४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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