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श्रावकाचार-संग्रह
बेदल वर्णन भोजन विदल तणीं विधि सुनो, जिनवर भाषो निहचै मुनो। दोय प्रकार विदल की रीति, सो भविजन आनो प्रीति ॥१०० प्रथम आ धान तणी विधि एह, श्रावक होय तजै धरनेह । सुनहु आ काष्ट तणी विधि जान, मूंग मटर अरहर अरु धान ॥१ मोठ मसूर उड़द अरु चणा, चौला कुलथ आदि गिन घणा। इतने नाज तणी है दाल, उपजै बेलि थकोसा नाल ॥२ खरबूजा काकड़ी तोरई, टीडसी पेठो पलवल लई । सेम करेला खीरा तणा, बीजा विधि फल कीजे घणा ॥३ तिनको दालथकी मिलवाय, दही, छाछि सो विदल कहाय । मुखमे देत लाला मिलि जाय, उतरत गलै पंचेन्द्री थाय ॥४ नाज वेलि तो ऊपजै जोय, सो आ काष्ट गनियो भवि लोय । छाछ तणो फल बीजह जान, तिनको दाल होय सो मान ॥५ छाछ दही मिल विदल हवन्त, यों निहचै भाष्यो भगवन्त । चारोली पिसता बादाम, बोल्यो बीज सांगरी नाम ॥६ इत्यादिक तरु फल के माहिं, बीज दुफारा मीजी थाहि । छाछ दही सो मेलि रु खाय, विदल दोष तामें उपजाय ॥७ गलै उतरता मिलि है लाल, पंचेन्द्री उपजै ततकाल । ऐसो दोष जान भविजीव, तजिए भोजन विदल सदीब ।।८ सांगर पिठोर तोरई तणा, मूरख करै राइता घणा । तिहका अघ को पार न कोय, जो खाहै सो पापी होय ॥९ तजिहे विदल दोय परकार, सो निहचे श्रावक निरधार। ककड़ी पेठो अरु खेलरा, इनको छाछ दही मैं धरा ॥१० राई लण मेंल जिहि माहि, करे रायता मूरख खाहि । राई लूण परै निरधार, उपजै जीव सिताब अपार ॥११ राई लूण मिलो जो द्रव्य, ताहि सरवथा तजिहै भव्य । कपड़े बांध दही को धरै, मीठो मेल शिखरणी करै ।।१२ खारिख दाख घोल दधिमाहिं, मीठो भेल रायता खाहिं। मीठो जब दधिमांहि मिलाहि, अन्तर्मुहूर्तमें त्रस उपजाहि ॥१३ यामें मीठा जुत जो दही, अन्तर मुहूर्त माहे सही।
खावे भविजन को हित दाय, पीछे सम्मूर्छन उपजाय ॥१४ उक्तं च गाथा-इक्खुदहीसंजुत्तं, भवंति सम्मुच्छिमा जीवा।।
अन्तोमुहूत्त मज्झे, तम्हा भणंति जिणणाहा ॥१५ बोहा-कांजी कर जे खात हैं, जिह्वा लंपट मूढ़ । पाप भेद जाने नहीं, रहित विवेक अगूढ ॥१६ अब ताको विधि कहत हौं, सुणी जिनागम जेह। ताहि सुणत भविजन तजो, मनका सकल संदेह ॥१७
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