SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पदम-कृत श्रावकाचार उत्तम ए पालो आचार, दिन पर ति वृद्ध व्रत ए । धरिये ए प्रतिमा इग्यार, उत्कृष्ट श्रावक होइ संत ए॥८१ दोहा इग्यार प्रतिमा इम कही, संक्षेपें सविचार । विस्तार आगम जाण जो, जिनशासन अनुसार ॥१ पाक्षिक नैष्ठिक साधक, श्रावक त्रिहु भेद होय । जैन पक्ष सदा धरे, ते पाक्षिक नामें जोय ॥२ श्रावक आचार जे रहे, ते नैष्ठिक गुण नाम । आत्म काज साधे सदा, ते साधक गुण ग्राम ॥३ षट् प्रतिमा जे सदा धरें, जघन्य धावक ते जोय । मध्यम पणे प्रतिमा नव, उत्तम एकादश होय ॥४ निज शक्ति को प्रकट करि, प्रतिमा पाले इग्यार। सोलमां स्वर्ग लगें सुख लहि, प, पामें मोक्ष दुआर ॥५ सफल जन्म छ तेहना, सफल जीवी जाणों तेह । जिनसेवक पदमो कहे, श्रावक आचार पालें जेह॥६ अथ ढाल रसना देवीनी प्रतिमा कही इग्यार तो, तप बारह हवे सुणो ए। बाह्य तप षट् भेद तो, अभ्यन्तर षट् भेद भण्यां ए॥१ अणसण पेहलो नाम तो, अवमोदर्य बीजो कह्यो ए। व्रत परिसंख्या त्रीजो तो, चौथो रसत्याग सही ए॥२ पंचम विविक्त सिज्यासन्न तो, छट्ठी काया तणों क्लेश ए। जुजुआ कहुं तरु भेद तो, जिय गुरु उपदेशे सुण्यां ए॥३ अणसण विधि तप नाम तो, तिथि नक्षत्र वारि ए। उपवास कीजे तेह तो, जिन शासन अनुसारि ए॥४ नन्दीश्वर दिन अष्ट तो, आषाढ कातको मास ए। फाल्गुण विधि सहित तो, कीजिए पाप-नाश ए ॥५ पंचमी श्वेत कृष्ण तो, रोहिणी नक्षत्र माल ए। पार्श्वनाथ रविवार तो, आठम चौदस सदा करो ए॥६ श्रावण सातमी मुक्ति तो, मुकुट जिन आगलि धरी ए। श्वेत दशमी कुंभ नाम तो, पूजा जिन आगल करी ए ७ श्रावण मास कृष्ण पक्ष तो, प्रतिपद दिन आदि ए।. सोल कारण उपवास तो, एकान्तर कीजे सदा ए॥८ मेघमाला श्रुत स्कन्ध तो, व्रत श्री जिन मुख ए। दीप धूप फल जे द्रव्य तो, मास लगें कीजे दक्ष ए॥९ चन्दन षष्ठी लब्धि विधि तो, त्रैलोक्य त्रोज कही ए। आकाश पंचमी सातमी निर्दोष तो, सुगंधे दशमी सही ए ॥१० सरस्वती दिन इग्यार तो, पुष्पांजलि दिन पंच ए। दश लक्षणी दिव्य धर्म तो, कोजे विधि पुण्य संच ए॥११ श्रावण द्वादशी व्रत तो, अनन्त चौदस चंग ए। रत्नत्रय पवित्र तो, सदा कीजे मन रंग ए॥१२ मुक्तावली इन्द्र विधान तो, कनकावली रत्नावली ए। पल्य विधान पुण्यवन्त तो, कीजे एक द्विकावली ए ॥१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy