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स्वास्थ्य की दृष्टिसे भी सूर्यास्तसे पूर्व भोजन करना परम हितकारी है । आयुर्वेदके शास्त्र बतलाते हैं कि सायंकालके भोजनके एक प्रहर पश्चात् शयन करना चाहिए, अन्यथा अजीर्ण आदि अनेक रोग उत्पन्न होते हैं । र. त्रिके प्रथम और द्वितीय प्रहरमें भोजन जैसा अच्छी तरह और जल्दी पचता है, वैसा तीसरे और चौथे प्रहरमें नहीं पचता । जो लोग रात्रि भोजन करते हैं, उनपर ही हैजा (कालरा) आदि संक्रामक रोगोंका अधिक प्रभाव पड़ता है । हैजेसे मरनेवालोंमें बहुसंख्यक रात्रिभोजी ही मिलते हैं अतः रात्रिभोजनका परित्याग हर एक विवेकी पुरुषको अवश्य ही करना चाहिए ।
वस्त्र-गालित जल
वस्त्रसे गालित जल-पान करनेकी महत्ता भी सर्वविदित है । अनछने जलमें अनेक सूक्ष्म सजीव होते हैं, वे जलके पीनेके साथ साथ उदरमें जानेपर स्वयं तो अनेक मर जाते हैं और अनेक जीवित रहकर बड़े हो जाते हैं और नेहरुआ जैसे भयंकर रोगोंको उत्पन्न करते हैं । इसलिए जोव-रक्षण और स्वास्थ्य -संरक्षणको दृष्टिसे वस्त्र-गालित जलका पीना आवश्यक है ।
जैन कुलमें यद्यपि मद्य, मांस और मधुका सेवन परम्परासे नहीं होता रहा है, पर आजकी नवीन पीढ़ीमें इनका प्रचार उत्तरोत्तर बढ़ रहा है और प्रायः बड़े नगरोंके जैन नवयुवक आधुनिक होटलोंमें जाकर मद्यपान और विविध व्यंजनोंके रूपोंमें मांस भक्षण करनेमें प्रवृत्त हो रहे हैं । उनके माता-पिताओंका कर्त्तव्य है कि वे घरमें ही अन्नके सरस भोज्य पदार्थ बना और खिलाकर अपनी सन्तानको होटलोंमें जाने और उक्त निन्द्य वस्तुओंके सेवन करनेसे रोकें ।
इस प्रसंगमें एक सत्य घटनाका उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा । सन् ४३-४४ में जब मैं उज्जैन था, तब मेरे निवास स्थानके सामने एक जर्मन महिला मिस क्राउने रहती थीं । द्वितीय युद्धके कारण वे उज्जैन नगर सीमामें नजरबंद थीं । सन् २१ में वे जैनधर्मका अभ्यास करनेके लिए जर्मनीसे भारत आयी थीं । जब वे भारत आने लगीं तो उनका पिता बोला- घास-फूस खानेवाले शाकाहारी लोगोंके देशमें जाकर मांस जैसे पौष्टिक आहारको न करके तू बिना मौत ही मर जायगी । मिस क्राउने कहा- जाकर देखूँगी कि आखिर शाकभोजी लोग क्या खाकर जीवित रहते हैं । उन्होंने बताया कि जब मैं यहाँ आई और बेसन, मैदा आदिके घृत-पक्व मिष्टान्न आदि खाये, तब मैंने अपने पिताको इस विषय में लिखा और जब मैं पहिली बार स्वदेश गयी तो वे भारतीय पकवान बना करके अपने पिताको खिलाये । वे उन्हें खाकरके अत्यधिक प्रभावित हुए और भारतीय शाकाहारके प्रशंसक ही नहीं, अपितु मांस खाना छोड़कर शाकाहारी बन गये ।
मिस काउजे शुद्ध शाकाहारी और अनस्तमितभोजी थीं ।
तत्त्वार्थसूत्रकारसे लेकर परवर्ती प्रायः सभी श्रावकाचारकारोंने ग्रहण किये गये अहिंसादि व्रतों की स्थिरता के लिए पाँच-पाँच भावनाएँ बतायी है । आजके जैनोंको उनकी आठ मूलगुणोंकी स्थिरता और दृढ़ता के लिए निम्न प्रकारसे भावना करनी चाहिए
१. मैं अपने शुभ-अशुभ कर्मबन्धका स्वयं ही कर्ता और उनके फलका भोक्ता हूँ, अन्य कोई नहीं हूँ, अतः मैं दुखादिके प्रतीकारार्थं किसी भी देवी- देवताकी उपासना नहीं करूँगा । केवल वीतरागी जिनेन्द्रदेव दयामयी धर्म और निर्ग्रन्थ गुरुकी ही श्रद्धा, भक्ति और उपासना करूंगा ।
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