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________________ करनेवाला नैष्ठिक श्रावक कहते हैं। जो जीवनके अन्तमें देह, आहार आदि सर्व विषय-कषाय और आरम्भको छोड़कर परम समाधिका साधन करता है, उसे साधक श्रावक कहते हैं। आ० जिनसेनके पश्चात् पं० आशाधरजीने तथा अन्य विद्वानोंने इन तीनोंको ही आधार बनाकर सागार-धर्मका प्रतिपादन किया है। ५. अष्ट मूलगुणोंके विविध प्रकार यहां प्रकरणवश अष्टमूलगुणोंका कुछ स्पष्टीकरण अप्रासंगिक न होगा। श्रावकधर्मके आधारभूत मुख्य गुणको मूलगुण कहते हैं । मूलगुणोंके विषयमें आचार्योंके अनेक मत रहे हैं जिनकी तालिका इस प्रकार है :आचार्य नाम मूलगुणोंके नाम (१) आचार्य समन्तभद्र-स्थूल हिंसादि पाँच पापोंका तथा मद्य, मांस मधु त्याग । या अनेक श्रमणोत्तम (२) आचार्य जिनसेन–स्थूल हिंसादि पाँच पापोंका तथा द्यूत, मांस और मद्यका त्याग । (३) आचार्य सोमदेव-आचार्य अमृतचन्द्र, पद्मनन्दि, आशाधर, मेधावी, सकलकीति, ब्रह्मनेमिदत्त, राजमल्ल आदि । मद्य, मांस और मधुका त्याग ।' (४) अज्ञात नाम-(पं० आशाधरजी द्वारा उद्धत )-मद्यत्याग, मांसत्याग, मधुत्याग, रात्रिभोजनत्याग, पंच उदुम्बरफलत्याग, देवदर्शन या पंचपरमेष्ठीका स्मरण, जीवदया और वस्त्रसे छने जलका पान।। १. देशयमनकषायक्षयोपशमतारतम्यवशतः स्यात् । दर्शनिकायेकादशावशो नैष्ठिकः सुलेश्यतरः ।।१।।-सागारध० अ० ३ २. देहाहारहितत्यागाद् ध्यानशुद्धयाऽऽत्मशोधनम् । यो जीवितान्ते सम्प्रीतः साधयत्येष साधकः ।।-सागारध० अ० ८ ३. मद्यमांसमधुत्यागः सहाणुव्रतपंचकम् । अष्टौ मूलगुणानाहुऍहिणां श्रमणोत्तमाः ॥६६।।- रत्नक० ४. हिंसासत्यास्तेयादब्रह्मपरिग्रहाच्च बादरभेदात् । द्यूतान्मांसान्मद्याद्विरतिगृहिणोऽष्ट सन्त्यमी मूलगुणाः ।।-महापुराण (चारित्रसारे उक्तम्) ५. मद्यमांसमषुत्यागः सहोदुम्बरपंचकैः । अष्टावेते गृहस्थानामुक्ता मूलगुणाः श्रुते ।।-यशस्तिलकचम्पू मद्यपलमधुनिशाशनपंचफलीविरतिपंचकाप्तनुती । जीवदया जलगालनमिति च क्वचिदष्टमूलगुणाः ॥१८॥-सागारध० अ० २ क्वचित् क्वापि शास्त्र । यद् वृद्धा पठन्तिमद्योदुम्बरपञ्चामिषमधुत्यागाः कृपा प्राणिनां नक्तंभुक्तिविमुक्तिराप्तविनुतिस्तोयं सुवस्त्रनुतम् । एतेऽष्टो प्रगुणा गुणा गणधरैरागारिणां कीर्तिताः एकेनाप्यमुना विना यदि भवेद् भूतो न गेहाश्रमी ।।-(सागारघ०, ज्ञानपञ्जिका, पृ० ६३ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001554
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size13 MB
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